मानव के विकास की कहानी से तो शायद सब परिचित होंगे ही,फिर भी अपनी इस यात्रा के अनुभव से आपको परिचित कराने से पहले मै पुनः एक बार फिर इस विकास यात्रा को दोहराता हूं।जब मानव ने खेती कर के वर्ष भर भोजन की चिंता से अपने को मुक्त कर लिया तो मेरा मानना है कि अगला विचार उसका भ्रमण का ही आया होगा। और जब पहली बार इस विचार ने उसके मन में घर बनाया होगा तो सर्व प्रथम उसकी नजरें आसमान में मुक्त रूप से उड़ते पक्षियों पर जरूर गई होगी और जरूर विचार किया होगा कि काश मैभी इन पक्षियों की भांति उड़कर दूर दूर तक घूम सकू ओर प्रकृति की सुंदरता का अनुभव लेे सकूं।आज भी मेरा मानना है कि ये विचार प्रत्येक मनुष्य में स्थाई रूप से होता है अन्यथा लोग घूमने के लिए देश विदेश में हर साल इतना पैसे खर्च करके ना जाते।अब चूंकि मै भी एक मनुष्य ही हूं तो मेरा भी मन भी घूमने के लिए करता ही रहता है और मै अपने व्यस्त समय ओर बचत का बड़ा हिस्सा इस पर खर्च करता हूं।लेकिन आज भी बचपन की एक इच्छा अधूरी रही है कि काश मैं भी आसमान में उड़ सकता और इधर उधर उड़कर दूर दूर तक जा सकता। भला हो उन राइट बंधुओं का, जिनकी वजह से हवाई जहाज का निर्माण हुआ और मनुष्य की पुरानी पक्षियों कि भांति उड़ना संभव हुआ।लेकिन आम भारतीयों की तरह अपनी इतनी बचत कभी नहीं रही कि मंहगी हवाई यात्रा का अपना बचपन का सपना पूरा कर सकूं। वो तो भला हो सरकार का कि उसने पिछले वर्ष भारत की मुख्य भूमि से दूर द्वीपों की यात्राओं के लिए हवाई जहाज के सफर की एल टी सी की मंजूरी दे दी।अब क्या था सारे इफ ओर बट छोड़ कर तुरंत अधिकारियों को मनाकर अपने इस पुराने सपने को पूरा करने हेतु निकल लिए।अब भला इस के लिए अंडमान द्वीप समूह से बढ़कर और कोई जगह हो ही नहीं सकती थी।मैने इस यात्रा का दोनों तरफ से फायदा लेने का प्रोग्राम बना लिया कि अंडमान जाएंगे तो पानी के जहाज से मगर वापस मुख्य भूमि भारत आने के लिए हवाई जहाज से ही आएंगे।
अंडमान जाने के लिए पानी के जहाज की यात्रा का अनुभव तो मै अपने पिछले ब्लॉग में लिख चुका हूं ।इस बार तो मै अंडमान से पहली बार हवाई जहाज से वापस आने ओर पक्षियों की तरह उड़ने के अपने बचपन के सपनों को पूरा करने हेतु निकल पड़ा।सबसे पहले मैने अपने पूर्व अधिकारी महोदय से ही राय ली जो कई साल पहले अपने अधिकारी होने के पद का फायदा उठा कर एक बार नहीं कई बार हवाई यात्रा कर चुके थे।अब ये कोई लिखने कि बात नहीं है कि मेरी अज्ञानता का जमकर फायदा लेते हुए, आफिस का तमाम पुराना पेंडिंग कार्य पूरा करा लेने के बाद ही मदद को राज़ी हुए।मुझे ये कहते हुए कोई संकोच नहीं कि इस मदद के बदले उन्होंने मेरी जानकारी के साथ साथ हवाई जहाज की टिकट खरीदने तक सारे कार्य कर दिए। जिस दिन जाना था उन्होंने उस से एक दिन पहले अपने केबिन में बुलाया और कहा कि देखो भाई टिकट आदी के सारे कार्य तो मैने कर दिए है अब हवाई अड्डे के अंदर की जिम्मेदारी तुम्हारी ही है।उनसे सारी अंदर की तमाम फॉर्मेलिटी को जान कर ,खूब कंठस्थ करके यात्रा आरंभ कर दी।
अंडमान घूमने के अंतिम दिन हमने फिर से आंख बंद करके पुराने ऋषियों की तरह अधिकारी महोदय की हर बात को दो दो बार याद किया ओर होटल के कमरे की लाइट बंद कर दी।
पहली हवाई यात्रा के इस रोमांच में हर दो घंटे में उठ कर घड़ी देखते रहे कि कही सुबह के ६ तो नहीं बज गए।खेर सुबह ६ बजे का अलार्म लगाया था मगर अलार्म से घंटे भर पहले ही उठकर खाली समय का फायदा उठाते हुए जहाज के टिकट को शायद दसवीं बार देखा और उसके नियम की जानकारी ली।हमारी पहली हवाई यात्रा का समय दोपहर २ बजे का था ओर जेट एयरवेज के नियमानुसार २ घंटे पहले ही पंहुचना था । अतः खाने पीने से लेकर होटल छोड़ने तक की सारी कार्यवाही पूरी करते सुबह के 10 ही बज पाए।अभी तो 2 घंटे बाकी थे और होटल से हवाई अड्डा कार से कुल 20 मिनट की दूरी पर ही था।जिंदगी में शायद शादी की रात के बाद यह दूसरा अवसर था जब इंतजार हमसे काटे नहीं कट रहा था। परिंदे की तरह उड़कर आसमान से मिलने की चाहत मुझे ही नहीं ,पूरे परिवार को थी।खेर जैसे तैसे घड़ी ने 11 बजाए तो तुरंत टैक्सी को बुलवा लिया और हम चल पड़े आसमान से मिलने।
रास्ते की अंडमान की सुंदरता को निहारते निहारते लगभग आधे घंटे में हवाई अड्डे पन्हुच गए।तब हमारी अनाड़ी आंखो को भी लगा कि अरे क्या हवाई अड्डा इतना भी खाली होता है ,क्योंकि हमारे रेलवे स्टेशनों के भीड़ से लदे प्लेटफार्मो के अनुभवों के उलट यहां कोई भी नहीं था।सामने एक बड़ी सी शानदार इमारत थी।लेकिन हमारे अलावा वहां कुछ पुलिसवालों के अलावा दूर दूर तक कोई भी नहीं था। शायद इस बात को हमारी श्रीमती जी ने भी भांप लिया था इसी से उन्होंने पूछा कि यह कुछ अधिक खाली खाली नहीं लग रहा है? उत्तर तो हमारे पास भी नहीं था क्यों, वो हम पहले ही आप को बता चुके है,यह हमारी भी पहली हवाई यात्रा थी,मगर हम पति थे और वो भी भारतीय , तो इज्जत कि खातिर उत्तर तो देना ही था। शान बघारते हुए गर्वीले अंदाज में कहा ये कोई ट्रेन यात्रा नहीं है कि एरे गेरे आ सके,अजी हवाई यात्रा है यह। यहां हम जैसे ही आ पाते है समझी।उस वक्त श्रीमती जी को एकदम खामोश देख कर अब आपको कैसे बताए कि उस वक्त हम कैसा महसूस कर रहे थे।वाह,जिंदगी के ये एकाध ही मौके थे जब पत्नी जी से अपने को बहुत बड़ा समझ रहे थे जैसे कि…. हमारे आफिस के बड़े ये
अधिकारी महोदय हमारे सामने अपने को समझते हैं वाह!
खैर टैक्सी से उतर कर हम खड़े खड़े सोचने लगे कि किधर जाएं ,क्या करे ,किस से जानकारी लें क्यों की हमारे अलावा कोई यात्री दीख ही नहीं रहा था। हमें इस तरह खड़े देख कर आखिरकार एक पुलिस अधिकारी से शायद रहा नहीं गया ,वो सीधे हमारे पास आया,हमसे इस तरह खड़े होने का कारण पूछने लगा।हमने बड़े गर्वीले अंदाज में टिकट निकली, उसे दिखाया ,कहा कि भाईजी हमारी 2 बजे की जेट हवाई जहाज की फ्लाइट की है।उसने टिकट देखी थोड़ा कुछ सोचा फिर उसने जो बताया उसे सुनकर उस वक्त हमें कैसा लगा वो हम आज तक नहीं भूले है और ना ही कभी भूलेंगे । ये फ्लाइट तो सुबह 10.30 पर जा चुकी है! इन शब्दों का कुछ वैसा ही असर हुआ जैसा की सेकंड वर्ल्ड वर के समय अमेरिका के द्वारा अचानक ही नागासाकी और हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराने के समय वहां की जनता और नेताओं के ऊपर हुआ होगा।भले ही उस समय किस्मत से हम वांहा नहीं थे पर जितना किताबो में पढ़ा था शायद उससे कहीं अधिक नहीं तो उसके बराबर ही हम पर उस पुलिस अधिकारी के शब्दों का असर हुए था कि…फ्लाइट तो जा चुकी है।हमारे ऊपर तो जैसे बिजली ही गिर पड़ी, क्षण भर में सारा हिसाब किताब याद आगया।5500 रूपए पर टिकट के हिसाब से पांच सदस्यों के कुल रूपए 25000 गए पानी में! अब तो हमारे पास इतने रुपए भी नहीं कि दोबारा हवाई टिकट लेे सकें।ये तो सरकारी पैसे थे ,हमारी क्या ओकात की 25000 अपनी अपनी जेब से खर्च कर सकें ।सही कहता हूं कि शायद उस समय सिर जरूर चकराया होगा कि मुख्य भूमि से 2000 किलोमीटर की दूरी और बीच में विशाल समुद्र,ये भी नहीं कि चलो ट्रेन की जर्नल डिब्बे में बैठ कर सफर पूरा कर लिया जाए ।अब क्या करेंगे ,कोई ऐसा भी परिचित दोस्त या रिश्तेदार भी नहीं था जिसकी हैसियत उस 2005 में इतने रुपए देने की थी।पहली बार इस मुहावरे का अर्थ सही तौर पर समझ आया कि …दिन में तारे देखना कैसा होता है।तुरंत जितने भी देवी देवता थे सभी को स्मरण किया । जो मानसिक इस्टिथी उस हमारी थी उसका पूरा वर्णन मै आज भी करने में अपने को असमर्थ पाता हूं ।तभी अचानक उस पुलिस अधिकारी की आवाज जैसे हमें होश में वापस ले आई.. किधर के रहने वाले हो ? मथुरा के।अरे मै भी अलीगढ़ का हूं।तुरंत पहली बार हमें अहसास हुआ कि परदेश में अपनी भाषा बोलने का क्या असर होता है,शायद हमें हिंदी में बात करते हुए उसे अचरज हुआ होगा कि कोई हवाई यात्री भी हिंदी में बात करता हैं क्या?बैंक की नौकरी करते हुए अलग अलग जगहों में ट्रांसफर होते रहने से मुझे अहसास था कि परदेश में अपनी भाषा बोलने वाले के मिलने का असर कैसा होता है ।सुनो मेरी बात ध्यान से .. उसकी इस बात से हमें फिर एक मुहावरा याद आया … डूबते को तिनके का सहारा…अंधा क्या चाहे दो ना सही एक हीआंख…सुनो …उसकी आवाज में अपनेपन की आवाज को मैने तुरंत भांप लिया।… जैसा मै कहता हूं वैसा ही करना, मै अभी जेट कंपनी के कर्मचारियों को बुलाता हूं,थोड़ा प्रेशर डाल कर बात करना ।कहना कि हमारी टिकेट के अनुसार फ्लाइट तो 2 बजे की है ,अतः हम तो उसके अनुसार सही समय पर आए है,हमारा क्या कसूर अगर फ्लाइट पहले उड गई। और जोर लगा कर कहिए कि मैं एक सरकारी कर्मचारी हूं,सारे कानून जानता हूं।मुझे कुछ नहीं सुनना,इसमें आपकी कंपनी की गलती है ,सीधे भारतीय कंस्यूमर कोर्ट में मामला ले जाऊंगा। थोड़ी ही देर बाद जेट कंपनी के 2 अधिकारी आते दिखाई दिए ओर इस से पहले कि वो कुछ कहते हम पूरी ताकत से उन पर पिल पड़े,आखिर उस समय तो ये हमारे लिए जीने मरने की तरह था । हमने वैसा ही किया जैसा कि उन अधिकारी महोदय ने समझाया था । फिर तो जैसे
कमाल हो गया … जेट कंपनी के कर्मचारियों से कुछ कहते ना बन पड़ा।। शुरू में उन्होंने थोड़ी बहाने बाजी की कोशिश की कि हमने तो मोबाइल पर एसएमएस कर दिया था,जवाब में मैने पूरी जोर से लगभग चीखते हुए कहा कि हमें कोई एसएमएस नहीं मिला।अब ये और बात थी कि पता नहीं जाने कैसे मैने टिकट के आवेदन का फार्म भरते हुए अपना मोबाइल नंबर नहीं लिखा था,क्योंकि एक तो नम्बर देना जरूरी नहीं था दूसरे उन दिनों इंकामिंग के पैसे लगते थे जो कि रोमिंग में ओर ज्यादा लगते थे।तुरंत मेरी बात का असर हुआ,उनसे अब कुछ कहते नहीं बना।बोले पहले आप धीरे बोलिए ,हम कुछ इंतजाम करते हैं,कुछ समय रुकिए हम अपने सीनियर अधिकारी से बात कर के आपको बताते हैं ।पता नहीं ,मेरे सरकारी कर्मचारी होने कि वजह या फिर चीखने कि वजह .. थोड़ी देर में आकर बोले ,देखिए अब कल ही फ्लाइट आएगी तो उसमे आपकी यात्रा का इंतजाम कर देंगे।अंधा क्या चाहे… फिर मुझे पुनः उस पुलिस अधिकारी की एक ओर बात याद आयी कि कहना कि हमारे रहने का इस परदेश में कोई इंतजाम नहीं है,हम होटल भी छोड़ आए है। आशा के विपरित जेट के कर्मचारी बोले कि क्योंकि गलती उनकी है अतः रहने के लिए आपको होटल का भी इंतजाम कर देंगे। हम प्रतक्ष्य गवाह उस समय के है की किस्मत कैसे अपना रंग बदलती है। कान्हा क्षण भर पहले हम जीने मरने के किनारे पर थे और कहां सब कुछ ठीक हो गया।बिल्कुल वहीं अनुभव हमें उस क्षण हुआ कि मरते मरते मरीज किसी चमत्कार की वजह से पूरी तरह ठीक हो जाता है ।वे फिर बोले कि जिस टैक्सी में आप आए है वहीं आपको होटल तक छोड़ आएगी,उसका किराया भी हम ही देंगे । वाह.. तब हमने देखा कि वो टैक्सी वाला अभी तक वहीं खड़ा है।शायद वो जानता था कि हमारे साथ ऐसा ही होगा या फिर हमारे अलावा कोई अन्य यात्री ना होने के कारण वह वहीं खड़ा था। अब इतना मैं आपको बता दूं कि अंडमान एक बहुत ही छोटी जगह है अतः हवाई अड्डा भी छोटा सा है । दिन भर में एक दो ही फ्लाइट आती हैं। चैन की सांस लेते हुए टैक्सी में बैठते ही अचानक उस हम वतन पुलिस अधिकारी की याद आई।रुको टैक्सी वाले को कहते हुए मैने जब पुलिस वाले को देखने की कोशश की तो वो जा चुके थे।हृदय से उनकी अनुपस्थिति में उनको सैकड़ों दुआए देते हुए हम होटल की तरफ चल दिए।
अंडमान होटल 3 स्टार था जो हमारे बजट के बाहर का था,मगर जेट कंपनी की वजह से आज उसका भी आनंद ले रहे थे।होटल स्टाफ ने जाते ही 2 रूम अलॉट कर दिए ,एक बेटों के लिए दूसरा हमारे लिए।शानदार होटल,शानदार कमरे ओर शानदार आवभगत।स्टाफ ने बता दिया कि आप सबको खाना आदि सब फ्री है,आपलोग अगर घूमने जाना चाहते है तो जा सकते है।अब पहले ही हम सारा अंडमान घूम चुके थे,इस लिए अब तो इस बड़े होटल में रहने की फ्री की दावत का ही सुख लेने के लिए बेचैन थे।अब यह कोई लिखने कि बात नहीं है कि पूरा दिन हम सब ने केवल खाते पीते ओर सोते ही बिताया।थोड़ी देर पहले जन्हा किस्मत को रो रहे थे,अब उसी किस्मत का आनंद ले रहे थे।
शाम को जेट कंपनी की तरफ से संदेश आया की सुबह 6 बजे आपको हवाई अड्डे लेे जाने के लिए बस आएगी तैयार रहिएगा।कोई बात नहीं,फिलहाल इस समय का तो आनंद लेलें।अगले दिन सुबह बस में जब बैठे तो उस पहली उड़ान के लिए दिल, ,उड़ने से पहले ही उड़ने लगा था।एक बात तो मै आपको बताना ही भूल गया कि होटल में ठहरने के बाद अचानक दोपहर से बारिश शुरू हो गई।आमतौर पर अंडमान में लगभग रोज दोपहर होते ही वर्षा होने लगती है जो कि एक आम बात
होती ही है और चूंकि हम आरामदायक होटल में थे वो भी बिल्कुल फ्री अतः आराम करते हुए दिनभर बरसात का आनंद लेते रहे ।रात हो गई लेकिन बरसात जरा भी बंद नहीं हुई थी। कोई बात नहीं हमे क्या परेशानी थी,सुबह कंपनी की ही जिम्मेदारी थी सही समय पहुँचाने की।सुबह हुई बस अाई और हमें सपरिवार लेकर हवाई अड्डे की तरफ रवाना हो गई,उस वक्त हमने गौर किया कि बस में हम अकेले नहीं बल्कि काफी सारे यात्री भी थे यानी हम अकेले ने ही कोई तीर नहीं मारा था ,। सुबह 7 बजे हम सब हवाई अड्डे आ गए,लेकिन बरसात थी कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी।तेज बारिश,साथ ही बिजली की जोरदार गरज, मगर हम निश्चिंत थे। यंहा हमने गौर किया कि जो हवाई अड्डा कल बिल्कुल खाली था वो अब यात्रियों से पूरा भरा था।पता चला कि जेट की फ्लाइट के साथ उसके आधे घंटे बाद इंडियन एयर लाइंस की भी फ्लाइट थी इसीलिए ये छोटा सा हवाई अड्डा पूरा फुल था।धीरे धीरे समय बीतता गया मगर ना बारिश रुकी ,ना ही समय रुका।इंतजार के साथ साथ हम उड़ान के लिए भी बेचैन थे।12 बजाने के बाद भी जब फ्लाइट नहीं अाई तो फिर कुछ शंका हुई।यात्रियों की खुसुर पुसुर से पता चला कि तेज बरसात के कारण शायद आज भी फ्लाइट नहीं आयेगी , हालाकि जहाज अंडमान के आसमान तक तो आए मगर तेज़ बारिश के कारण उतरने मेंअसमर्थ होने से वापस चले गए हैं क्योंकि अंडमान का हवाई अड्डा बहुत छोटा है, उस पर आधुनिक तकनीक भी नहीं है जिसके कारण जहाज़ नीचे उतर सकें।कोई बात नहीं आज हम बिल्कुल नहीं घबराए बल्कि इस बात से थोड़े खुश थे कि शायद उस बड़े होटल में एक दिन और फ्री में रुकने का सुख मिलेगा।रहना,खाना पीना सब फ्री तो काहे का ग़म! और वहीं हुआ जिसकी सोच रहे थे,हालांकि उड़ान ना कर पाने की कसक भी थी।इंतजार शायद हमारी और परीक्षा लेे रहा था,लेकिन बदले में काफी कुछ मिल भी तो रहा था।तभी कुछ लोगों की चीखने चिल्लाने की आवाज आने लगी । गौर किया तो पता चला कि ये उन यात्रियों कि आवाजे है जिन्हे इंडियन एयर लाइंस की उड़ान से जाना था।कारण पता चलने पर ज्ञात हुए कि जहां जेट कंपनी फ्लाइट ना आने पर अपने यात्रियों के फ़्री रहने खाने का इंतजाम कर रही थी, वही इंडियन एयर लाइंस ने कहा कि
उनके यात्रियों को इसी छोटे से हवाई अड्डे पर एक बड़ा हाल ओर तीन रूम्स के साथ दिन ओर रात बितानी होगी।खाने के नाम पर पैक्ड फूड का पैकेट मिलेगा।सच कहूं हम हैरान थे ।हम तो सोचते थे की प्राइवेट कंपनी कोई सुविधा नहीं देती होगी और सरकारी कंपनी ही सारी सुविधाएं देती होगी मगर इधर तो सब कुछ हमारे अनुमान के विपरीत था।कारण तो वो ही जाने हमें क्या लेनादेना,ओर जेट कंपनी के जहाज में बुकिंग कराने के अपने निर्णय पर उस समय हमें संतोष भी हुआ,साथ ही मन ही मन वादा कर लिया आगे कभी उड़ान का मौका मिलेगा तो जेट को ही चुनेंगे।
फिर क्या ,कल की तरह होटल में वापसी, वो ही फ़्री के रूम और खाना पीना,हमें कोई चिंता नहीं थी। संयोग देखिए कि 3 बजे के करीब बरसात भी रुक गई,मौसम भी सुहावना हो गया।उस वक्त हमने तो यही सोचा कि शायद पूर्व जन्मों के किसी पुण्य कर्मो की वजह से पहली ही फ्लाइट में ऐसी फ्री की सुविधा का भी अनुभव लेे लिया।बाद में अपने आफिस के उन्हीं अधिकारी महोदय से बात चीत में उन्होंने स्वीकार भी किया कि वो तो पिछले 10 वर्षों से हवाई यात्रा कर रहे है लेकिन कभी ऐसा मौका नहीं मिला जो हमे मिला था ।मुझे लगा कि उन्हें शायद हमारे इस सुख से जरूर जलन भी हुई होगी।
लगभग ठीक ही समय पर हवाई जहाज नीचे उतरा तो थोड़ी चिंता हुई कि इतने छोटे रनवे पर अगर ब्रेक ठीक से नहीं लगे तो यह तो सामने की दीवार से जरूर टकरा जाएगा,मगर सही समय पर ठीक स्थान पर वह रुक गया।हम मुंह बाये देखते रहे ,उस में से काफी यात्री उतरे।जहाज के अधिकारी तब तक हमें एक लाइन में खड़ा कर के सारे पेपर चेक करते रहे। उसके बाद उन्होंने हमें एक बड़े से शीशे के सामने से निकाल कर पैदल ही खड़े जहाज की तरफ जाने का निर्देश दिया। और जब हम सामने खड़े जहाज के पास आए तो मंत्र मुघद थे।दिमाग में पुष्पक विमान था,कल्पना की उड़ान थी ओर हम थे ।जहाज की एक एक सीढ़ी जैसे हमें कल्पना लोक में लेे जा रही थी।जहाज के गेट पर जब मुस्कुराती खूबसूरत एयर होस्टेस ने हाथ जोड़ कर नमस्ते की तो सच मानिए हम जहाज के उड़ने से पहले ही उड़ने लगे थे।अंदर आगे बढ़े हमारे हर कदम, हमें जीवन की इस पहली उड़ान का नया अनुभव करा रहा था।हम जब निर्धारित सीट पर बैठे,तो गहराई से अंदर का दृश्य देखा।लगा जैसे किसी विशाल गोल डिब्बे में सीट फिक्स कर दी गईं है, छोटी छोटी खिड़कियां ,एक दूसरे से चिपके से,साथ साथ बैठे यात्री किसी सिनेमा हाल की याद दिला रहे थे, मगर अंतर केवल इतना था कि सामने स्क्रीन की जगह बंद केबिन था ओर हिरोइनों की जगह एयर होस्टेस खड़ी थी,नम्रता का भार लिए।जब सब बैठ गए तो उन्होंने सीट बेल्ट लगने को कहा,मगर हम यहां भी नौसिखिए ही साबित हुए।पेंट की बेल्ट तो रोज बांधते है ,मगर ये कैसी बेल्ट है जो कमर पर बांधनी है पेंट पर नहीं।भला हो उस खूबसूरत एयर होस्टेस का ,जाने कैसे उसने दूर से ही भांप लिया की हम बेल्ट नहीं बांध पा रहे है ,वह तुरंत हमारे पास अाई और झुका कर बेल्ट बंधवाई।सच कहें हम जहाज उड़ने से पहले ही सातवें आसमान पर उड़ने लगे थे इतने प्यार से तो ना तो हमारी माताजी ने कभी बेल्ट बंधवाई,ना ही पिताजी ने ,बल्कि कभी कभी तो एक आध बार चांटा भी खाया था। तभी स्पीकर से आवाज आई, मै आपके जहाज का कप्तान बोल रहा हूं।हम इस वक्त अंडमान से नईदिल्ली की यात्रा आरंभ कर रहे हैं।इसमें तीन घंटे बीस मिनट उड़ान के लगेगे।एक पड़ाव बीच में कलकत्ता का होगा।दिल्ली का तापमान पैंतीस डिग्री होगा।जेट एरवेज़ आपका स्वागत करता है।ये सारे संदेश पहले अंग्रेज़ी में फिर हिंदी में बताए गए।उसके बाद जैसे ही हमारा विमान चला,हमारा दिल जोर जोर से धड़कने लगा।थोड़ी दूर तक धीरे चलने के बाद जैसे ही विमान की गती तेज हुई,हमारी धड़कन भी वैसे ही तेज हो गई।सौभाग्य से मुझे खिड़की वाली सीट मिली थी।विमान के गती पकड़ते ही जैसे हमने बाहर झांका,हमारा दिल जोर जोर से धड़कने लगा कि उसके आगे विमान के इंजन की धड़क भी कम लगी कारण ? क्योंकि विमान जैसे ही हवा में उठा सामने जो नजारा हमारी आंखो ने देखा उससे हमारी धड़कन तो जैसे रुक ही गई थी । रनवे की सड़क खत्म होते ही विशाल खाई नजर आईं।इस से पहले हम कोई बुरी कल्पना करते की तभी हमें फिर मधुर आवाज , आई आप अपनी सीट बेल्ट खोल सकते हैं।।वो तो एयर होस्टेस ने शुरू में सीट बेल्ट बंद खोलना सीखा दिया था नहीं तो शायद हम पेंट कि बेल्ट ही खोल देते।तभी फिर सामने खड़ी एयर होस्टेस ने टोका ,लीजिए आप का नाश्ता। वाह,इतनी ऊंचाइयों पर खाने का स्वाद हम कभी जिंदगी भर नहीं भूलेंगे वाह।थोड़ी देर उड़ान भरने के बाद, सब ठीक है ,हम जिंदा भी हैं ,इस संतोष के साथ खिड़की से नीचे देखा तो दंग रह गए ।नीला आसमांन नीचे कैसे आ गाया ? आसमान तो ऊपर की ओर होता है।वो तो भला हो साथ बैठे बेटे का समझ गया होगा कि मै क्या सोच रहा हूं।पापा ये नीचे समुद्र है जो नीला दिख रहा है।ओह तो ये बात है!अब हम कभी उड़े तो थे नहीं जो यह अनुभव लेे पाते,जाने कैसे हमारे बेटे ने ये बता दिया था।हम मुग्ध से नीचे देख रहे थे तभी हमारी नजर नीले समुद्र पर छोटे छोटे सफेद से निशानों पर पड़ी जिनके एक ओर सफेद लकीर सी खींची थी।लेकिन अब हम भी समझदार हो गए थे कि ये सफेद निशान समुद्र पर तैरते पानी के जहाज ही थे और सफेद लकीर उनके चलने से पैदा हुई लहर ही थी।उस इतनी ऊंचाई से नीचे समुद्र को देखने का सही सही वर्णन करने के शायद मेरे पास सही शब्द नहीं है क्योंकि ये केवल अनुभव से ही समझा जा सकता है।
विमान उड़ रहा था,हम भी अपने बचपन के उड़ने के सपने के साथ उड़ रहे थे कि तभी फिर पायलट का उद घोषणा हुई,यात्री गण कृपया ध्यान दे इस वक्त विमान कि गति 800 किलोमीटर प्रति घंटा है हम 24000 फुट की ऊंचाई पर उड़ान भर रहे हैं एवम् बाहर का तापमान माइनस 24 डिग्री सेल्सियस है।हम चकित थे कि जब ट्रेन 100 किलोमीटर की घंटे की गति पर चलती है तो खूब हिलती है वहीं विमान की इस इतनी अधिक गति का कुछ पता ही नहीं चल रहा है ।ना कोई झटका ना कोई हिलना, बस विमान शांत गति से उड़ रहा है।उड़ने के बाद जो थोड़ा बहुत भय था वो भी अब जाता रहा था ओर हम इस नए ओर पहले अनुभव का आंनद लेे ही रहे थे कि तभी फिर उद्घोषणा हुई विमान कलकत्ता अड्डे पर उतरने वाला है कृपया अपनी सीट बेल्ट बांध ले।वाह हम फिर एक बार चकित हुए कि जिस कलकत्ता से पानी के जहाज में अंडमान आने में 4 दिन लगे थे ,तमाम कष्ट भोगे थे वहीं इसने 1 घंटे 30 मिनट के लगभग समय में ये विशाल दूरी तय की थी।हम निरुत्तर थे हैरान थे।बस ऐसे ही नई दिल्ली की यात्रा पूरे आनंद के साथ पूरी हो गई।
बस इसके बाद तो जैसे हम नॉर्मल हो गए ओर इस पहली यात्रा के अनुभव को हमेशा के लिए अपनी यादों में बसा कर पूर्ण संतोष के साथ नई दिल्ली उतर गए।
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हवाई यात्रा का सुन्दर विवरण। अच्छा लिख लेते हैं।
Hamne bhi yatra ka purn anubhav kiya very nice