“” अरे वैद्य जी ,मेरी अम्मा का शरीर कल से तप रहा है तो जल्दी से पुड़िया दे दें ,अरे ,कुछ देर रुको , मैं अभी बना कर देता हूं ,नही वैद्य जी , हमें जरा जल्दी है ,अरे इतनी भी क्या जल्दी है ,थोड़ा सबर तो करो ,नही वैद्य जी , हमें घर पर पुड़िया देने के तुरंत बाद गोवर्धन की परकम्मा देने जाना है ,क्या कहा ,गोवर्धन की परकम्मा ,तो बेटा मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूं ,नही नही तुम अब बुजुर्ग हो गए हो ,तुम्हे बहुत समय लगेगा इस परक्कम में ,तुम आते रहना ,बस ,जल्दी से हमे दवाई की पुड़िया दे दो !””
ये सारा वार्तालाप मथुरा के चौक बाजार में स्थित ” वैद्य दाउ दयाल ” से, दो जवान लड़कों की हो रही थी।वे वैद्य जी को,उम्रदराज होने के कारण साथ नही ले जाना चाह रहे थे।इसलिए झटपट उन्होंने पुड़ियाएं ली और चल दिए ।वैद्य जी गोवर्धन नाथ जी के बड़े भक्त थे ,जब भी वैद्य गिरी से अवकाश मिलता ,वे सब छोड़ छाड़ ,मथुरा से बीस किलोमीटर दूर परिक्रमा के लिए चले जाते ।
ये सत्य घटना आज से पचास से अधिक साल पहले की है ,जिसका वर्णन मैं आज आपके साथ कर रहा हूं क्योंकि मैं उन्ही वैद्य दाउ दयाल का ही नाती हूं। उन दिनों कहीं भी आने जाने का एक ही साधन होता था तांगे की सवारी ,जो उस समय इक्का दुक्का चलने वाली बसों से बहुत सस्ती पड़ती थी।भले ही इस आवागमन में समय बहुत लगता पर ये जिस समय की घटना है इस समय आम लोगों के पास समय की कोई कमी नही होती थी।
अब आपको जो मैं ये सत्य घटना सुना रहा हूं वो मेरी नानी जी ने मेरे नाना जी के महाप्रयाण के बाद बताई थी ,क्योंकि नानाजी के कोई बेटा नही होने से ,उनकी वैद्य की दुकान चलाने की जिम्मेदारी मुझे मिली थी।ये दुकान आज भी मथुरा के चौक बाजार में है ,उम्र होने के कारण आज भी मैं कभी कभी केवल जान पहचान वालों के लिए ,दवाई बनाने के लिए खोलता हूं ,नही तो ये बंद ही रहती है।
वैद्य गिरी का अच्छा खासा अनुभव मुझे बचपन से उनके साथ रहते ,दुकान पर तरह तरह के रोगों एवम उनके इलाज में प्रुक्त होने वाली देसी दवाइयों की पहचान, वैद्य जी, जो मेरे नाना भी थे, से सीखी थी। अब जिस सत्य घटना के बारे में मैं आपको बता रहा हूं ,उसे एक दिन मेरी नानी ने मुझे तब बताई थी , जब ऐसे ही एक साधारण दिन मैने नानी को कहा कि “” नानी ,आज मेरी इच्छा गोवर्धन जी की परकाम्मा के लिए हो रहा है ,इस लिए मैं आज दुकान जल्दी ही बंद करके ,वहीं से सीधे गोवर्धन चला जाऊंगा ” ।
तुरंत नानी ने मुझे रुकने को कहा ,अपने पुराने से एक संदूक ( लोहे के बक्से )में, से एक पीले पड़े ,पुराने कागज का टुकड़ा निकाला , और बोली ” ये तुम्हारे नाना की लिखा महा मंत्र है बेटा ,पूरी परक्ममा में इस मंत्र का जाप करते जाना ” । मैने कहा ठीक है , और कागज के टुकड़े को अपने कुर्ते की जेब में रख लिया।” अरे पहले अच्छी तरह से तो पढ़ ले।ये आजमाया हुआ महा मंत्र है ” ,” तुम्हे कैसे पता कि ये सिद्ध मंत्र है “? पता नही ,क्यों मेरे चेहरे पर उन्होंने क्या भाव पढ़ लिया कि मुझे पास मे बैठने को कहा।मुझे परक्मम की जल्दी थी।पर नानी जी बात की अनसुना करने की हिम्मत मेरी नही थी ,इस लिए उनकी बात सुनने के लिए बैठ गया !
अब जो ,मेरी नानी ने इस महामंत्र के बारे में जो मुझे बताया था ,वो सब अनुभव, उन्हे मेरे नाना जी ने अपनी गोवर्धन जी की परिक्रमा के पश्चात उन्हें बताया था।अब नानी जी ने मुझे जो ये सत्य घटना, उस दिन सुनाई थी ,वो मैं आपको नानाजी के शब्दों में ही, सीधे सुना रहा हूं । तो सुनिए ये सत्य घटना ,मेरे नाना जी की जुबानी ,उन्ही के शब्दों में ,उन्ही के अनुभव से !!
…. उस दिन जब, गिर्राज जी की परकम्मा की जो इच्छा मेरे मन में आई , मैं ,उन लड़कों को पुड़िया देने के बाद ,दुकान बंद कर ,घर में बिना बताए ,सीधे चौक बाजार से गिर्राज जी के लिए तांगे में बैठ चल दिया, क्योंकि शाम के तीन बजे के करीब समय हो गया था ।गोवर्धन पहुंचते पहुंचते शाम के छ बज गए ।सीधे दानघाटी मंदिर में ऊपर से गिर्राज जी की मूर्ति को प्रणाम किया ,यात्रा शुरू करने के स्थान से परिक्रमा पथ की मिट्टी को अपने माथे से लगाया और भगवान श्री राधा कृष्ण के मंत्र “” श्री राधा कृष्ण के गह चरण ,श्री गिर्राज धरण की ले शरण “” का मन ही मन जाप करता ,युगल जोड़ी का ध्यान करता ,परिक्रमा पथ पर चल पड़ा। मैं जब भी परिक्रमा शुरू करता ,सारे सांसारिक कामों को विस्मर्त कर देता था।
कुछ ही देर में शाम का धुंधलका अंधेरों में ढलने लगा ।आसपास के इक्का ,दुक्का घरों ,दुकानों में दिया बत्ती की रोशनी कभी कभी परिक्रमा पथ को दिखाती ,अन्यथा अंधेरे में , अपने पूर्व के अनुभवों से, सहजता से, परकम्म में, मुझे कभी कोई कठिनाई नहीं होती थी।
बरसात का समय था ,कुछ देर पहले ही बारिश हो कर चुकी थी ,जिस से उमस भी हो रही थी। इतनी शाम को मेरे अतिरिक्त कोई अन्य यात्री परिक्रमा नही दे रहा था ।मुझे क्या , मैं तो सब कुछ भूल ,जाप करते हुए आगे बढ़ा जा रहा था।कोई एक घंटे बाद परिक्रमा पथ पर पहला छोटा सा गांव “” आन्योर “” पड़ा ।ग्राम वासी भी ,दिन भर की उलझनों से मुक्त हो ,घर के बाहर बने चबूतरों पर बैठ, इधर उधर की बातें करते हुए सोने की तैयारी में लगे थे ,उनमें से एक दो ग्रामीणों ने ,लालटेन की हल्की रोशनी में जब मुझे परिक्रमा लगाते देखा तो बोलने लगे ,”” अरे बाबा ,रात बहुत हो गई है , यहीं आज रात आराम कर लो ,कल सुबह परिक्रमा फिर से यहीं से शुरू कर देना “” ,मगर मैने नही में सर हिला दिया और आगे बढ़ चला ।”” अरे बाबा आगे गांव के बाहर जो कुंड है ,बरसात की वजह से पूरा भरा हुआ है उसका पानी रास्ते के ऊपर तक चढ़ा हुआ है , कीचड़ में धंस जाओगे “”, मगर मुझे तो ना रुकना था , नाही रुका।मुझे अपने हृदय में विराज मान जुगल जोड़ी पर पूरा विश्वास था ।बस उनका ध्यान कर ,”” श्री राधा कृष्ण के गह चरण ,श्री गिर्राज धरण की ले शरण “” मंत्र का जाप करते हुए आगे बढ़ गया ।
** आज भी गोवर्धन की परिक्रमा पथ पर गांव आन्योर के तुरंत बाद बने इस कुंड के कारण, परिक्रमा पथ, थोड़ा सीधा ना हो, थोड़ा बांए घूमता हुआ जाता है।अब तो इस कुंड को चारो ओर से पक्का कर दिया गया है ,विद्युत लाइटों से कुंड ही नहीं ,पूरा पथ ही जगमगाता रहता है ,परंतु उस समय जब मैं परिक्रमा लगा रहा था तो इतना कुछ इंतजाम नहीं था।**
मैं गाँव वालों की बात अनसुना करते हुए आगे बढ़ गया।आगे घुप अंधेरा था ,कुछ भी नही दिखाई दे रहा था ।अभी मैं मुश्किल से कुछ ही दूर गया था कि मुझे लगा आगे, पथ पर पानी जमा है ,बिना कुछ सोचे विचारे, मैंआगे बढ़ गया , और फिर अचान चक, घुटनों तक पानी में अपने को पाया । मैने थोड़ा और आगे बढ़ने की कोशिश की, जोर लगा कर पांव को जो ऊपर उठाने की कोशिश की ,तभी मुझे लगा कि मैं कीचड़ में बुरी तरह धंसता जा रहा हूं । जितना दम मैं पैरों को ऊपर उठाने को करता ,उतना ही मैं नीचे कीचड़ में धंसने लगता ।कुछ ही देर में , मैं कमर तक कीचड़ में धंस गया ।मुझे समझ में आने लगा कि इस कीचड़ से बाहर निकलना तो अब असंभव ही हो गया है , शायद अब प्राण भी बचने की कोई संभावना नहीं दिख रही ,तो मैं, अपनी दोनो आंखे बंद कर , कातर स्वर में ,जुगल जोड़ी का ध्यान कर के, उन्हे पुकारने लगा। इतना सब होने के बाद भी, मैने महामंत्र “” श्री राधा कृष्ण के गह चरण ,श्री गिर्राज धरण की ले शरण “” का जाप करना नही छोड़ा।
मैं मंत्र जाप के साथ आर्त स्वर में मन ही मन भगवान से यही कह रहा था कि अगर मेरी मृत्यु का समय आ गया है तो ये तो टल नही सकती ,परंतु ,मेरी अम्मा, पत्नी,सारे रिश्तेदार ,शायद मेरे लापता होने से बड़े कष्ट में रहेंगे ,काश ,किसी तरह ये पता लग जाता कि मैं इस कुंड की दलदल में समा गया हूं तो वे tassali तो कर लेंगे !
धीरे धीरे जब मैं कीचड़ में कंधे तक धंस गया ,जीवन की कोई आस भी नही बची ,तो मैं इसे अपना अंतिम समय मान ,भगवान श्री राधा कृष्ण की जुगल जोड़ी को हृदय में धारण कर ,जोर जोर से महा मंत्र “” श्री राधा कृष्ण के गह चरण ,श्री गिरवर धरण की ले शरण “” मंत्र का जाप ,जिसे मुझे कई वर्ष पूर्व ,इसी तरह गोवर्धन पथ की परकम्मा लगाते हुए ,अनायास किसी संत ने मुझे बताया था ,को करने लगा ! !
जब मैं, इस घुप अंधेरे में ,कंधे तक कीचड़ में धंसते हुए ,मृत्यु को परोक्ष देखते हुए ,सुध भी बुध खोने ही लगा था कि मुझे एक बच्चे की आवाज आई “” अरे इस अंधेरे में कौन पानी में फंसा हुआ है ,कौन है रे तू ,कौन है “” ! मैने मुंदती आंखों को खोल ,देखने का प्रयत्न किया तो उस अंधेरे में भी मुझे एक छः वर्ष का बालक दिखाई दिया ,मुझे निरुत्तर देख ,उसने फिर से वही दोहराया “” अरे ,कौन मिट्टी, पानी में खड़ा है बता “” ? पता नही क्यों , मैं इस क्षण ,सब कुछ विस्मृत ,उस छोटे से बालक को देखने लगा ।मुझे मूक देख, वो फिर बोला “” अरे बाबा ,पानी में क्या कर रहे हो ,डूब जाओगे ,बाहर आओ तुरंत “”, “” मगर कैसे , मैं तो पूरा कंधे तक, पानी के अंदर कीचड़ में धंसा हुआ हूं ? “” तो वो बालक फिर बोला “” ऐसा कर ,तू मेरी ये बांसुरी पकड़ , मैं तुझे बाहर खींचता हूं””। “” अरे ,तू नन्हा सा बालक ,इतना छोटा सा तो तू है ,फिर इस छोटी सी बांसुरी से मुझे कैसे बाहर खींच सकेगा,मेरे साथ तू भी डूब जायेगा “”। “” तू कुछ मत सोच ,बस बांसुरी के छोर को पकड़ , मैं तुझे खींच लूंगा “” , “” अरे नही, नही मेरे साथ तू भी डूब जायेगा ,तू जा “”।”” अरे ,बाबा ,तू कुछ मत सोच ,बस ये बांसुरी पकड़ “! मैने पुनः इनकार किया ,तू मुझे छोड़ ,हो सके तो इतना कर दे कि अपनी अम्मा से मेरे घर ,जो कि चौक बाजार ,मथुरा में है , ये सूचना भिज़ वा देना , कि वैद्य दाऊदयाल ,परकम्मा देते देते ,इस कुंड में डूब गया है ताकि ,जीवन भर ,मेरे लिए वो परेशान नहीं हों ,संतोष कर लें कि मैं लापता नही हुआ हूं , मर गया हूं।”” कैसी बात करता है तू बाबा ,बस तू मेरी ये बांसुरी के छोर को पकड़ , मैं आसानी से तुझे बाहर खींच लूंगा “!
तब, अपनी मृत्यु निकट जान ,उस बालक के मन रखने को , मैने, उसकी ,मेरी ओर बढ़ाई ,बांसुरी के छोर को हल्का सा ही ,छूने भर को ,पकड़ा ,पर ,यह क्या ! बांसुरी पकड़ते ही मुझे लगा कि वो सच में मुझे बाहर खींच रहा है ।कुछ ही क्षण में , मैं ,कीचड़ ,मिट्टी ,पानी ,यहां तक कि अपनी निकट मृत्यु से बाहर आ चुका था !!
बाहर निकलते ही अंधेरे में , मैने उस छोटे बालक को गौर से देखा ,घुंगराले बाल ,पीले से रंग का फेंटा पहने हुए साथ ही केश में ,छोटा सा मोर पंख खोंसे देखा !! मैं हैरानी से उसे देखता रहा फिर पूछा “” क्यों री,तू है तो छोटा सा ,लेकिन तेरे में इतनी ताकत कहां से आई ,जो तू ने मुझे ,आसानी से बाहर निकल दिया “”, “” चल चल बाबा ,तू अपनी परक्कमा पूरी कर ,अब मैं घर जाऊंगा ,वैसे भी तेरे चक्कर में बहुत समय लग गया ,अब मुझे घर जाना है , नही तो मेरी अम्मा मुझे डांटेगी , और हां ,आगे से इतनी रात को परक्क्मा मत दिया कर “” ,कहते हुए ,जब तक मैं कुछ समझूं ,वो बालक ,दौड़ सी लगाते हुए ,अंधेरे में कहीं गुम हो गया !!
मैं श्री राधा कृष्ण की जुगल जोड़ी को धन्यवाद देते हुए ,गीली हुई धोती कुर्ते को ,निचोड़ते हुए ,इस घटना के बारे में ,जैसे ही सोचने लगा ,तभी मुझे समझ आई ,ओह ! ओह ! अरे ,क्या वो बालक ,कन्हिया तो नही था ? इतने में मुझे स्मरण हो आया ,उसकी पीली फेंट ,बांसुरी ,बालों में लगी ,मोर पंखी । हे भगवान ,ये तो साक्षात श्री कृष्ण ही थे जो मुझे अपनी शरणागत जान ,मुझे ,मृत्यु के मुंह से ,स्वयं बाहर निकालने आए थे ।इतना ज्ञान होते ही , मैं तुरंत ,इस बालक की दिशा की ओर दौड़ा ,पर ये क्या ,दूर दूर तक उनका कोई चिन्ह ही नही था। मैं पागलों की तरह ,धरती पर लोट लोट कर ,अश्रु बहाते हुए ,अपने अज्ञान के प्रति रोष दिखाते हुए , कि वे ,जगत के पालन हार ,स्वयं मुझे बचाने ,मेरे समक्ष आए और मैं मूढ़ ,अज्ञानी ,उन्हे पहचान ही नही पाया ।
“” अपने घर मथुरा आकर जब वैद्य जी ने ,अपनी अम्मा, और मुझे ये सब जब बताया ,तो सहसा , मैने, उनकी बात पर विश्वास नहीं किया, परंतु उस दिन के बाद उन्होंने ,दुकान , मकान सब छोड़ ,चौबीसों घंटे , हर पल,जीवन भर ये महा मंत्र “” श्री राधा कृष्ण के गह चरण ,श्री गिरवर धरण की ले शरण ,”” का जाप करना शुरू कर दिया ,इस लिए बेटा अब तू गोवर्धन की परक्क्म जा रहा है तो ये जो मंत्र उन्होंने मुझे इस कागज पर लिख कर दिया था ,उसका पूरे समय जाप करते रहना ।
ये सब सुन ,उस दिन तो क्या ,आज तक , मैं इस महा मंत्र को अपने हृदय में धारण कर ,जाप करता रहता हूं । ** जय श्री राधा कृष्ण **
विशेष : : ये एक दम सत्य घटना है जिसे कुछ वर्ष पूर्व गोरखपुर से प्रकाशित होने वाली पत्रिका “” कल्याण “” में ,मथुरा के रहने वाले भक्त ने ही ,जन कल्याण हेतु छपवाई थी।आज भी चौक बाजार मथुरा में दाउ दयाल वैद्य के नाम से दुकान है ,हालांकि ,उनका नाती ,जिसने अपने ननाजी का ये अनुभव अपनी नानी से सुना था ,एवम उनके हाथ का लिखा ,महामंत्र का कागज ,आज भी सुरक्षित उनके पास रखा है,अब दुकान कभी कभार ही खोलते है,पर वे आज भी इस घटना के साक्षात प्रमाण है।सुधि पाठकों को कुछ प्रेरणा प्राप्त हो सके ,इसी लिए ये स्वयं सिद्ध , सत्य घटना लिखने को प्रेरित हुआ हूं !
* श्री राधा कृष्ण के गह चरण *
** श्री गिरवर धरण की ले शरण **
बहुत ही सुंदर घटना 🙏🙏
ऋषि जी,
आनंद आय गयौ,
श्री गिर्राज धरण बाबा तिहारी शरण
घटना बहुत ही रोचक व भावात्मक है।पढ़ते समय लगा कि मैं कोई कथा नहीं पढ़ रहा हूँ अपितु स्वयं परिक्रमा में उनके साथ हूँ व घटना। का साक्षी हूँ।धन्यवा
Bahut hi marmik ghatna dilko chhune Bali baat
सच्चे मन से प्रभु का स्मरण किया जाए तो प्रभु कभी भक्तों का अहित नहीं होने देतेः
बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति बहुत ही सुन्दर चित्रण, दिल को छू लिया।