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    तवा डेम : नर्मदा नदी तक की यात्रा

    दिसंबर की दूसरी तारीख ,सुबह की चाय की चुस्कियां श्रीमती के साथ ,सुबह के उगते सूरज की लालिमा ,इन सब का आनंद अभी मैने लेना शुरू ही किया था कि फोन की घंटी बज उठी ।अरे इतनी सुबह किस को मेरी याद आ गई ! देखा तो मेरे परम मित्र ,भाई के समान, पारिख जी का था ।फोन उठाते ही बोले “” क्या ससुराल वालों से झगड़ा हो गया है आपका भाई साहब ,नही तो, मैने अचरज से कहा ,तो फिर कई महीने से भोपाल जाना क्यों बंद कर रखा है ? निरुत्तर सा मैं ,उनकी इस बात से हैरान हो ,अभी कोई जवाब सोच ही रहा था कि वे फिर बोले ,ऐसा है भाई साहब ,तीस दिसंबर को मैं ,रेलवे से रिटायर हो रहा हूं ,तो क्यों नहीं एक बार भाभी जी के साथ ,मेरे साथ भोपाल चक्कर लगा आओ ।उन्हे होल्ड पर रख,  श्रीमती जी की तरफ मैने प्रश्न वाचक नजरों से देखा ,तो आशा के विपरीत उन्होंने भोपाल जाने का कोई संकेत नहीं दिखाया तो , मैने तुरंत उनसे मन की बात कह दी ,”” पारिख जी , भोपाल तो हम पंद्रह दिन पहले ही हो कर आए थे ,अचानक जाना पड़ा ,लेकिन क्या आप इटारसी तक जा रहें हैं क्या , हां भाई साहब , जा रहा हूं ,आप एक बार और चलो मेरे साथ ,सुबह पहुंचेंगे ,शाम वापसी होगी ,आप भोपाल उतर ,सबसे मिल ,फिर मिल जाना।,कुछ सोच , मैने कहा ,अच्छा तो मैं आपको थोड़ी देर में बताता हूं, कह कर फोन बंद कर दिया ।

          भारत की कुछ प्रमुख ,बड़ी नदियों ,गंगा ,जमुना ,गोदावरी , कृष्णा,नर्मदा आदि में से नर्मदा नदी का वही महत्व, पूरे छत्तीसगढ़ एवम मध्य प्रदेश तथा आधे से अधिक गुजरात में है जितना कि गंगा ,जमुना का उत्तरी भारत में ! छत्तीसगढ़ ,गुजरात में नर्मदा नदी ना केवल इनके करोड़ों निवासियों को पीने के लिए जल प्रदान करती है अपितु उनके भरण पोषण हेतु खेती की सिंचाई के लिए भी जीवन रेखा है। इसके साथ साथ नर्मदा का धार्मिक महत्व भी गंगा यमुना नदियों से रत्ती भर भी कम नहीं है।  ये भारत की एकमात्र नदी है जो अन्य नदियों के विपरीत अरब सागर में समाती है।इसके किनारे गुजरात तक अनेक विख्यात तीर्थ स्थल भी हैं साथ ही इस एक मात्र नदी पर गुजरात तक लगभग एक सौ अस्सी से अधिक बांध भी बने है जिनमे बड़ौदा के समीप बना एशिया का दूसरा सबसे बड़ा बांध “” नर्मदा सागर “” बांध है जिसके किनारे देश के प्रथम गृहमंत्री “” सरदार पटेल की विश्व विख्यात मूर्ति बनी हुई है।

    नर्मदा की धार्मिक महत्व इस जन श्रुति से स्पष्ट होता है कि आज भी महाभारत का प्रमुख पात्र “” अश्वत्थामा जो कि अमर माना जाता है इसी नदी के किनारे ,घने वनों में कहीं रहता है।इतना ही नहीं ,भारत में अगर किसी नदी की परिक्रमा लगाई जाती है तो वो सिर्फ नर्मदा नदी है ।इसकी परिक्रमा की कुल लंबाई लगभग 5600 किलोमीटर से भी अधिक है जो कि तीन वर्षों में जा कर पूरी होती है।

           मैने नर्मदा नदी के बारे में इतना सुना पढ़ा है  कि मेरी बरसों से इच्छा थी कि में एक बार तो इस नदी में स्नान करने का सौभाग्य प्राप्त करूं एवम मध्य प्रदेश के सबसे बड़े बांध “” तवा बांध ,” जिसे ” तवा डैम ” भी कहते हैं को अपनी आंखों से देखूं। जब इस बारे में मैने और अध्ययन किया तो पता चला कि मेरी ये दोनो इच्छाएं एक ही स्थान पर जाने से पूरी हो जाएंगी और वो स्थान है इटारसी शहर के समीप “” होशंगाबाद “”!

           मैं जान चुका था की पत्नी श्री तो भोपाल जाने की इच्छुक नहीं है ,इस लिए क्यों ना मैं अपने किसी मित्र को अपने साथ होशंगाबाद ले  चलूं ।बस मैने सीधे फोन लगाया अपने मित्र “” गोपी नाथ शर्मा “” को ।जैसे ही उन्हें मेरे प्रोग्राम का पता चला साथ ही यह भी ,ट्रेन की सेकंड ऐसी में ,फ्री में आना जाना वो भी एक ही दिन में तो वे सहर्ष ही तैयार हो गए ( होना ही था ) !

        ठीक ग्यारह बजे रात को हम मथुरा स्टेशन के प्लेटफार्म पर पहुंच गए ।ट्रेन आने से कुछ देर पहले पारिख जी मिल गए ।कुछ ही देर में हम सब आराम से सीटों पर लेटे हुए नींद की गोद में समा गए।

        सुबह ठीक साढ़े छह बजे हम इटारसी स्टेशन पहुंच गए।पारिख भाई ने स्टेशन पर कुछ ऑफिस संबंधी कार्य निपटाए ,फिर हमें ले कर बाहर आगये।अपनी मन पसंद दुकान पर चाय पिलवाई ,नाश्ता काराया ,फिर बोले “” अब आप अपने कार्यक्रम के अनुसार घूमिए , मैं तो अब रेलवे के रेस्ट हाउस में रेस्ट करता हूं ,रात ग्यारह बजे यही ट्रेन मथुरा के लिए मिलेंगी,तब फिर मिलेंगे ,कह कर उन्होंने हमसे विदा ली ।ठीक भी था ,हम तो स्नान करने , डैम देखने आए थे।इटारसी से होशंगाबाद अगला स्टेशन है ,मोबाइल पर देखा तो पता चला ,वहां की ट्रेन दस मिनट बाद जाएगी तो हम दोनो , मैं और गोपी भाई।,पुनः प्लेटफार्म पर पहुंचे ,पूरी खाली ट्रेन में बैठ गए , हां ,हमने टिकट नहीं ली क्योंकि ” जब सैयां भए कोतवाल तो डर काहेका “!

          बीस पच्चीस मिनट में ट्रेन ने होशंगाबाद स्टेशन पर उतार दिया ,तब तक सुबह के नौ बज गए थे।दिसंबर के महीने में भी सूरज पूरी चमक बिखेर रहा था , वैसे भी मध्य प्रदेश में सर्दी नही के बराबर पड़ती है ।स्टेशन से सीधे टेंपो पकड़ा ,कुछ ही देर में हम ,पवित्र नर्मदा नदी के घाट पर खड़े थे।

           चिरप्रतीक्षित नर्मदा नदी में स्नान की इच्छा आज देव् योगवश पूरी होने जा रही थी।सोचा ,पहले घाट पर दृष्टि डाल ली जाए।टेंपो ने हमे जहां उतारा था वहां से घाट तक की दूरी सौ फुट के करीब ही रही होगी।इस छोटे से मार्ग के दोनो तरफ गिनी चुनी छोटी छोटी दुकानें ,कुछ पूजन सामग्रियों की तो कुछ चाय पानी नाश्ते की थी।सड़क लाल पत्थर की बनी हुई थी जिनमे हर तीर्थ स्थान की तरह गाय एवम कुत्ते घूम फिर रहे थे ।

    एक किनारे सिर्फ एक बड़ा सा मंदिर राधा कृष्ण का  बना हुआ था ।साफ पता चल रहा था कि ये तीर्थ स्थान ,गंगा या यमुना के किनारे बने घाटों की तरह ,तीर्थ यात्रियों से भरे हुए नही थे ।एक दम खाली खाली से ,कोई चहल पहल नहीं।ये सब देख मन कुछ खिन्न सा हुआ । हम तो सोच रहे थे कि इतनी पवित्र ,बड़ी नदी  के घाटों पर खूब रौनक होगी ,पर शायद यात्रियों के नाम पर तो सिर्फ हम दो ही थे !!

          कुछ दूर और आगे नदी की ओर बढ़े तो जो दिखाई दिया वो अद्भुत था ।हमारे दोनो ओर दूर तक पूरे पक्के घाट बने हुए थे।हमारे बाईं ओर ठीक किनारे पर गायत्री वालों का बड़ा आश्रम नुमा मंदिर बना था । जहां हम खड़े थे ,वहां से नर्मदा कोई तीस फुट नीचे,शांत सी बह रही थी।नदी तक ,नीचे पहुंचने के लिए बड़ी बड़ी सीढियां बनी हुई थी ।नदी के दूसरी तरफ ,हरियाली से भरा पूरा किनारा ,एक दम निर्जन दिखाई दे रहा था ।हमारी दाईं ओर नदी थोड़ा आगे, मोड़ लेती हुई एक छोटी सी पहाड़ी के आंचल में से जैसे अचानक निकल आई थी ।दाईं ओर ,ऊपर कुछ प्राचीन घर ,धर्मशालाएं सी बनी हुई थी,लेकिन थीं वो सब जन शून्य !!

          हम अभी ये सारा नजारा देख ही रहे थे कि एक आवाज ने हमे चौंका दिया।”” अगर आप को स्नान करना है तो आप इस तरफ़,नीचे चले जाइए ,वहां पानी एक दाम साफ है “”! देखा ,एक महिला पुलिस इंस्पेक्टर सामने खड़ी थी।हमे स्नान यात्री समझ ,मदद करने आई हुई होगी।बड़ा ही सुखद आश्चर्य हुआ ।उन्हे धन्यवाद दिया और स्नान के लिए उसके बताए घाट की ओर नीचे ,बड़ी बड़ी ,चौड़ी सीढ़ियों से उतरने लगे ।

             ऊपर से नीचे नदी तट की दूरी भी पचास फुट के लगभग थी।इस आधे किलोमीटर लंबे ,पक्के घाट पर जो कि एक दम जन शून्य था ,क्योंकि अब दस के करीब बज चुके थे ,धूप बहुत तेज थी ,हम नदी की धारा की ओर उतरने लगे।उतरते हुए हमे पक्के चबूतरे पर केवल तिरपाल ढकी एक दुकान सी दिखाई दी जिसमे पूजा के लिए कुछ फूलों से भरे दोने रखे थे ,जो कि स्नान के पश्चात पूजा के लिए होते हैं ,हमने उस पर अपने बैग रखे ,कपड़े उतार वहीं रखे और स्नान के लिए नीचे उतरने लगे।अब ,ये क्या ! स्नान के लिए छोटे छोटे पक्के घाट तो बने हुए थे परंतु उनके किनारे फूस ,मिट्टी से बने मूर्तियों के अवशेषों से भरे होने के कारण मत मैले पानी से भरे हुए थे , ऐसे में उनमें स्नान करने की इच्छा ही नहीं हुई। मैं ,हैरान था ,नर्मदा नदी तो अपने स्वच्छ ,पारदर्शी जल के लिए जानी जाती है तो ये यहां ऐसी मत मैली क्यों है।निराश ,हमने नदी के मध्य एवम दूर दिखाई देते किनारे की ओर नजर दौड़ाई तो लगा कि वहां जल एक दम साफ़ है ।कुछ देर दिमाग पच्ची के बाद समझ आया कि कुछ दिन पहले ही गणेश चतुर्थी का त्योहार निकला है जिसके बाद गणेश जी की मूर्तियों को यहां नदी जल में विसर्जित किया गया होगा ,जिसकी वजह से नदी किनारे का ये हाल हो रहा है।काश ! किसी एक तो विसर्जन करने वाले ने ,विसर्जन के बाद ,नदी किनारे का ये हाल देखा होता ।

          खैर ,अब इतनी दूर से आए हैं तो स्नान तो करना ही था ,क्योंकि नदी के दूसरी ओर कोई पक्का घाट नही था ,साथ ही कोई नाव भी नही खड़ी थी जिससे पार जा सकते ।अब आंख ,नाक बंद से करते ,एक हाथ से मूर्ति के अवशेषों को हटाते नदी में स्नान करने को जो पैर बढ़ाया तो ,नीचे मिट्टी की चिकनाई का अहसास होने से ,मन और खिन्न हो उठा ,परंतु जैसे कि हर हिंदू धर्मावलाबी की आदत होती है ,सब भूलभाल कर जल्दी जल्दी एक दो डुबकी लगाई , और बाहर निकल आए ।

            इस जैसे तैसे स्नान के बाद वापस घाट की सीढ़ियां चढ़ ,ऊपर आए ,तब तक सूरज ठीक सर के ऊपर आ चुका था ।गर्मी सहन नही होने के कारण ,सुबह से भूखे होने के कारण इधर उधर देखा ,मगर कोई भी ढंग की दुकान नही दिखाई दी ,जिस पर बैठ ,हम नाश्ता पानी कर सकते ! वापस चलते हुए हमने रस्म पूर्वक मंदिर में दर्शन किए ,टेंपो पकड़ा बस स्टेन जाने को ,ताकि अब यहां से नर्मदा नदी पर बने डैम को देखने जाने के लिए ।

         जैसा कि हम जानते हैं ,मध्य प्रदेश में सरकारी परिवहन व्यवस्था नहीं है ,सब कुछ प्राइवेट बस चालकों के हवाले है तो बस स्टेंड पहुंच , डैम तक जाने के लिए बस की जानकारी ली तो एक बस की ओर बढ़े ।बस में दो तीन ही सवारी बैठी थी ,अर्थात उसके अभी हिलने की कोई संभावना नहीं ,तो टाइम पास करने के लिए ड्राइवर से ही बात करनी आरंभ की।बातों बातों में ही पता लगा कि डैम तक जाने के लिए बस वापस झांसी शहर जाति है उसके बाद फिर डैम जायेगी , और समय का हिसाब ये कि प्राइवेट बस होने के कारण समय की नही ,अपितु सवारियों की चिंता अधिक ,इस लिए डैम तक कब पहुंचे ,कोई निश्चित नही ।तभी ये भी पता चला की झांसी तक पहुंचने में बाद कोई डेढ़ घंटे से भी ज्यादा समय लगाएगी ,जबकि ट्रेन मुश्किल से बीस मिनट लगती है।

         तुरंत मोबाइल में सर्च किया तो पता लगा कि इटारसी के लिए पंद्रह मिनट बाद एक ट्रेन जायेगी तो ,हम ,बस को छोड़ स्टेशन की ओर ,पैदल ही चल दिए ,क्योंकि स्टेशन पास में ही दिखाई दे रहा था ।

          ठीक समय पर ट्रेन आई ,हम ,उसमे जा बैठे , और कुछ ही देर में जा पहुंचे वापस ” इटारसी”” स्टेशन पर ,वो भी मुफ्त में !पारिख जी के साथ होने के कारण टिकट लेने का तो कोई सवाल ही नहीं था ना ! !

                ( शेष …….क्रमश: अगले भाग में )

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