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    तवा डैम : नर्मदा स्नान से तवा रिज़रवोइर का सफर

    पिछले पोस्ट से यात्रा को आगे भड़ाते हुए हम इटारसी स्टेशन उतर ,सीधे पहले पहुंचे ,नजदीक स्थित खाने के होटल में ।भरपेट भोजन कर , डैम तक कैसे पहुंचे ,ये जानकारी ले ,समीप ही स्थित जा पहुंचे बस स्टेंड पर ।

    अब इटारसी कोई बड़ा शहर तो था नही कि उसका बस स्टैंड भी बड़ा होता ।छोटा सा स्टेंड ,उस पर खड़ी तीन चार प्राइवेट बसें ।सब से पूछ लिया पर डैम तक कोई नही जा रही ।  दो बजने को आ गए अब क्या करें ,हमें रात तक वापस भी आना था ,इसी असमंजस में खड़े थे कि एक ड्राइवर नुमा आदमी हमारी ओर आया ,”” किधर जायेंगे “” पूछा तो हमने अपनी मंजिल बताई ।”” देखिए डैम तक एक आध ही बस जायेगी ,लेकिन वापस लौट कर नहीं आयेगी ,क्योंकि शाम को ऐसा ही निर्धारित होता है “” , मगर हमें तो शाम तक वापस आना है ,तो फिर आप एक जीप को किराए पर ले लीजिए “”!कह ,उसने सामने खड़ी दो तीन जीपों की ओर संकेत किया ।हम ,निराश हो ,उधर ही बढ़ चले ।”” अरे भाई , डैम तक चलोगे ,आना जाना करना है “” ये सुन ,बीड़ी पीता ,एक जीप का ड्राइवर ने मुंडी हिलाई । हां ,चलूंगा मगर 1200 रुपए लगेंगे ।हम समझ गए कि हमारी मजबूरी एवम बाहर से आए टूरिस्ट समझ वो फायदा उठाना चाह रहा है तो ये मान, कि चलो कोई तो राजी हुआ तो,अब, हिंदुस्तानी होने से मोल भाव तो बनता ही है ,बात 1000 पर बनी ।ड्राइवर की खिली बांछे देख हम समझ गए कि हमारी मजबूरी का उसने फायदा उठाया है तो हमने भी पक्का कर लिया कि डैम पर तीन चार घंटे बिता कर ही वापस चलेंगे ,उसके हां कहते ही हम दोनो जीप में जा बैठे और चल दिए मध्य प्रदेश के सबसे बड़े बांध “” तवा डैम “” की ओर !!

          शहर से बाहर निकलते निकलते हमे समझ आ गया कि चालीस किलोमीटर की एक तरफ की हमारी ये यात्रा आराम से नही होगी क्योंकि वास्तव में उस जीप का हॉर्न छोड़ सब कुछ खड़खड़ाहट ही सा गूंज रहा था।जाने कितना पुराना मॉडल होगा ये क्योंकि उसने स्टीरिंग ,गियर के डंडे समेत कुछ पार्टों को तो सुतली से बांध रखा था ,फिर भी कोई चारा नहीं होने के कारण ,हम काला धुंआ छोड़ती ,लड़खड़ाती जीप से चल दिए थे डैम की ओर ! !

        इटारसी शहर से निकलते ही हमारी जीप एक कच्चे पक्के रास्ते की ओर मुड़ गई जिस के बराबर में लिखा था “” तवा डैम “”, ।

          कुछ ही दूर से हमारी सड़क, जैसे मध्य प्रदेश के चौड़े पत्तों वाले ढाक और सागोन के वृक्षों से घिरे जंगलों में कहीं गुम सी हो गई । बल खाती पहाड़ों का अनुभव करती ,घने वनों में ,ना कोई गांव ,ना कस्बा ,बस सड़क के किनारे कभी कभी दूरी को बताते कोई बोर्ड से ही पता चलता कि हम डैम की ही और जा रहें है।इस पूरे रास्ते में हमे शायद ही कोई वहां आता जाता मिला होगा।धीरे धीरे हमे भी समझ आने लगा था कि जीप वाले से सौदा करके हमने कोई गलती नही की है !

    करीब दो घंटे की इस रोमांचक यात्रा के बाद जीप, दस बीस घरों की बस्ती में पहुंची।ड्राइवर ने बताया कि ये डैम के रख रखाव में लगे स्टाफ के निवास स्थल है ,दूर सामने उसने एक बड़े से ,ऊंचे बांध की ओर इशारा करते बताया कि यही वो तवा डैम है जो कि अभी भी डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर है।हम  चुपचाप इस निर्जन परंतु प्रकृति से सजी हुई ,आस पास के दृश्यों को अपनी आंखों से पीते हुए से निहारने में लगे हुए थे कि अचानक कुछ ऊंचाई पर, सामने एक सफेद रंग की विशाल , शानदार बहु मंजिला भवन जिसके चारों तरफ खुबसूरती से सजाया हुआ बगीचा था ,में ,एक बड़े से गेट से हमने प्रवेश किया ।


    जीप से उतर कर सामने लगे बड़े से बोर्ड को देखा तो समझ आ गया कि ये एक मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा संचालित होटल है।उस क्षण हमे ठीक ऐसा ही लगा जैसे कि अचानक रेगिस्तान में कोई नखलिस्तान दिखाई दे गया हो !पूरा होटल बड़े ही आकर्षक तरीके से निर्मित था ।जीप के ड्राइवर के साथ हमने होटल में प्रवेश किया ,उसके स्टाफ ने भी हमे हाथों हाथ लिया।

          कुछ देर हमने होटल के शानदार लॉबी में सफर की थकान ,ठंडी कोल्ड ड्रिंक के साथ उतारी। फिर सोचा कि क्यों ना पहले घने जंगल में बने इस शानदार होटल को पूरा देख लिया जाए ।जब स्टाफ ने हमे एक एक कर इस होटल के कमरों,लॉबी ,डाइनिंग रूम ,क्लब रूम ,दिखाने लगे तो हम सोचने को विवश होते गए कि इतने शानदार स्थान में स्थित इस शानदार होटल के बारे में तो अधिकांश को कोई जानकारी ही नहीं है ।


    बातों बातों में इसका कारण भी समझ आ गया कि सरकारी होने के कारण किसी को परवाह ही नही है।बेहद शानदार होटल में चार चांद और लग गए जब स्टाफ हमे होटल के सामने वाले खुले ,मगर शानदार पेड़ पौधों से सजे गार्डन की ओर ले गए।जैसे ही हम होटल के इस सामने वाले गार्डन में पहुंचे तो निसंदेह हम कुछ क्षणों तक हक्के बक्के रह गए ।सामने थी एक विशाल झील !! 

           झील इस होटल के सामने वाले हिस्से से कोई बीस फुट नीचे थी जहां शानदार पत्थरों से बनी सीढियां उसके किनारे तक जा रही थी। हम सब सीधे झील के किनारे की ओर ,मंत्रमुग्ध से जा पहुंचे ।यहां हमारा सामना एक और बड़े आश्चर्य से हुआ ।झील में चार जेट बोट खड़ी थी ,उनके बगल में ही था,तीन चार जेट बोट के साथ खड़ा, एक विशाल,तीन मंजिला ,खूबसूरत “” हाउस बोट “” ! जी हां ,वही खूबसूरत हाउस बोट ,जिसे हमने भारत में इस से पहले केवल श्रीनगर की डल झील में ही देखा था।एक पल को तो हमे लगा ,हम कहीं श्रीनगर की झील में तो नहीं खड़े हैं !!

         इस आश्चर्य से जब हम वास्तविकता में लौटे ,गौर से इस मनोरम ,विशाल ,खुबसूरत झील ,जो इतनी विशाल थी कि उसका दूसरा किनारा शायद मिलों दूर ,छोटे छोटे पहाड़ों से झिलमिला रहा था।इस विशाल झील के बीच में तीन ,चार छोटे बड़े टापू उसकी सुंदरता में और निखार लगा रहे थे ।फिर भ्रम हुआ कि कहीं हम केरल प्रदेश के बैक वाटर में तो नहीं खड़े है


    तभी हमारी चेतना को होटल स्टाफ ने जैसे धरातल पर पुनः ला खड़ा किया ।”” देखिए सर,वो दूर पुल सा दिखाई दे रहा है ,वही तवा डैम है “” ।विश्वास कीजिए ,हम दोनो आंखे फाड़े ,प्रकृति के इस अजूबे को ,जिसे शब्दों में प्रस्तुत करना अभी भी संभव नहीं है ,निहारे जा रहे थे।यकीन ही नहीं आ रहा था कि हम केरल में नही ,बल्कि ,मध्य प्रदेश के एक छोटे से शहर ” इटारसी ” में हैं।

         कुछ देर और इन सब नजरों का लुत्फ उठाते हुए आखिर कार हमने स्टाफ से बोट के द्वारा झील में घूमने की इच्छा प्रगट की ,तो वो सहर्ष तैयार हो गए। हमारी बोट ,बीस व्यक्तियों के बैठने की व्यवस्था वाली ,केवल मुझे एवम मेरे साथी गोपी नाथ जी को लेकर झील का सीना चीरने निकल पड़ी । जिन सुधि पाठकों ने अगर अंडमान निकोबार अथवा थाइलैंड के द्वीपीय समुद्र का बोट के द्वारा यात्रा की है ,उन्हे जो अनुभव उस समय हुआ होगा ,,विश्वास कीजिए , हमें भी वही अदभुत ,अविस्मरणीय अनुभव इस विशाल ,सुंदरतम झील में घूमते हुए ,झील में बने छोटे बड़े टापुओं के इर्द गिर्द घूमते हुए ,प्राप्त हो रहा था।  इतनी विशाल थी ये झील,जिसका दूसरे किनारों को खुली आंखों से भी पूरी तरह हम नही देख पा रहे थे ।

    चारों ओर ,घने वन ,ऊपर नीला ,खुला आकाश ,नीचे नीले ही रंग का ,अथाह गहराइयों वाली जलराशि एक अलग ही समा बांध रहा था ।झील के नीले पानी के ऊपर उड़ते तरह के पक्षी इसके सौंदर्य को दुगुना कर रहे थे।  ये सब इतना मनोरम था कि “” टाइटन “” जहाज के हीरो की तरह ,जिसमे वो समुद्र की यात्रा के मध्य ,अपने दोनो हाथ फैला कर , चलते जहाज के  ऊपर, ठीक आगे खड़ा हो कर जो सुख महसूस कर रहा था ,उसी तरह , मैं भी इस झील के शांत पानी के मध्य बोट से घूमते हुए ठीक आगे पहुंच गया और अपने दोनो हाथ फैलाते हुए ,इस कभी नहीं भूलने वाले अनुभव को ,आंख बंद कर ,हृदय से ग्रहण करने लगा था !!

     इस सुख को लेते लेते ,तीस ,चालीस मिनट का बीता समय तो लगा  जैसे एक पल में ही समाप्त हो गया।किनारे पहुंच कर हमने चालक दल एवम स्टाफ को इस बेहतरीन अनुभव देने के लिए धन्यवाद दिया।उनसे ये कहने से भी अपने को हम रोक नही सके कि जल्दी ही हम अपने परिवार के साथ एक बार फिर से यहां जरूर आयेंगे तो उन्होंने एक बात और बताई कि यहां जब भी आएं तो सितंबर से लेकर जनवरी माह तक के बीच आए क्योंकि सितंबर से पूर्व बारिश होती रहती है तथा जनवरी के बाद इस झील का जल स्तर बीस फुट तक काम हो जाया है ।वो इस लिए कि इस झील से पूरे मध्य प्रदेश तथा गुजरात के करोड़ों लोगों के भोजन और पीने के लिए ,अगली बरसात तक ,नर्मदा नदी में इस का जल प्रवाहित किया जाता है।

    होटल से बाहर आकर ,फिर से जीप में सवार हो ,हमारी आखिरी मंजिल ,इस झील के एक और बने बांध “” तवा डैम “” की और चल पड़े । लगभग डेढ़ किलोमीटर की संकरी , टेढ़ी मेढी सड़क पर चलते हुए जब हमारी जीप रुकी तो देखा आगे सड़क समाप्त हो गई है, और उसके ठीक सामने थी ,कुतुब मीनार से भी दुगनी ऊंची,एक किलोमीटर से भी लंबाई में बनी बांध की विशाल दीवार !उस दीवार नुमा विशाल बांध के ठीक नीचे थी “” तवा नदी “” जो इस बांध के कारण एक छोटी सी धारा का रूप लिए खड़ी थी।

    उसके जिस एक किनारे पर हम खड़े थे उसकी भी गहराई लगभग पचास फुट की थी ।एक तरफ ऊंचाई का अनुभव तो दूसरी तरफ विशाल खाई नुमा गहराई ,जिसके तीनो और हरा भरा वन क्षेत्र हमे जैसे एक बार पुनः सम्मोहित सा कर रहा था। एक दम निर्जन ,जन शून्य की अनुभूति से हम तब उबरे जब ड्राइवर ने टोका “” सर ,सूरज डूबने वाला है ,आप जल्दी ऊपर बांध पर चढ़ कर नजारा देख लीजिए ,अन्यथा सात बजे के बाद आप बांध नही देखपाएंगे ।

            बांध की विशाल ऊंचाई ,लंबाई वाली दीवार के एक किनारे पर सीधी सीढियां ,जो सीधे ऊपर ले जाने वाली थी ,हम चढ़ने लगे ।यकीन कीजिए ,बांध की ऊपरी अंतिम सीधी तक पहुंचते पहुंचते हम पसीने ,थकान से त्रस्त हो गए थे ,लेकिन ऊपर जाकर जो हमने देखा ,उस से ये सब कुछ ही क्षण में काफुर हो गया । हमारे एक और किलोमीटर में फैला ,इंजीनियरिंग का विशाल चमत्कार,तो दूसरी ओर पानी की सतह को बांधती ,धरती के सीने से ऊपर उठी हुई एक छोटी सी सड़क ,एक अनोखा ही मंजर प्रस्तुत कर रही थी। जहां तक भी हमारी नजर जा सकती थी ,केवल और केवल विशाल पानी का सागर सा ही दिखाई दे रहा था।

    झील के दूसरी ओर गहरे वन का साम्राज्य , इस समय एक गहन निरवता की चादर ओढ़े हमे दिखाई दे रहा था।शाम का सूरज ,अपनी सुनहरी ,शीतल हो चुकी किरणों से ,आसपास फैले विशाल जलराशि को जैसे पिघला हुआ सोने में बदलने लगा था। उस पल ऐसे लगा जैसे सूरज इस विशाल झील की गहराइयों में समाने जा रहा हो।  हम दोनो मित्र इस अनूठे सौन्दर्य को अपने मन मस्तिष्क में हमेशा हमेशा के लिए संजो कर रख रहे थे ।

    शीघ्र ही इस सारे वातावरण को ,जब शाम का फैलता धुंधलका, अपने आगोश में समेटने लगा तो हम मजबूरी वश पुनः एक बार यहां आने की सोच ,वापस अपने गंतव्य की ओर जाने के लिए ,जीप की ओर चल पड़े ।विश्वास कीजिए दो घंटे के इटारसी शहर के अपने वापसी के सफर के दौरान हम मोन ही रहे ,ताकि आज के अनुभव को कहीं हम छोटा ना करदे !

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    1. अभी अभी यात्रा वृतांत पढ़ा, आकर्षक चित्रों सहित विवरण देना भी एक कला है। डिजिटल माध्यम ने इसे और भी सरल बना दिया है।

    2. यात्रा का अद्भुत वर्णन और उसमें नगीने की तरह जड़ते हुए संबंधित चित्रों ने कथानक को और भी रोचक और जीवन्त बना दिया है। काश इस यात्रा में भाई गोपीनाथ जी के साथ साथ मैं भी होता।
      यात्रा का इतना सुंदर वर्णन करने के लिए बधाई हो।

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