मेरे घुम्मकड़ स्वभाव ने मुझे ,अन्य स्थानों के अतिरिक्त ऐतिहासिक स्थानों तथा धार्मिक स्थानों पर भी जाने के लिए मजबूर किया है।इसी स्वभाव के चलते , मैं ,पाकिस्तान स्थित ,गुरु नानक जी के निर्वाण स्थान : करतार पुर ,गुरु गोविंद सिंह जी के जन्म स्थान ,पटना ,गुरु तेगबहादुर जी के निर्वाण स्थल ,शीश गंज दिल्ली तक गया था ।तभी से मेरा हृदय मचल रहा था कि मैं गुरु गोबिंद जी के निर्वाण स्थल ,हुजूर साहिब ,नांदेड़ ,जिसे सच खंड साहिब भी बोलते हैं के दर्शन करने जाऊं ।संयोग से मेरा ,बेटे के पास जून में पूना जाने का प्रोग्राम बना ।वहां मुझे दो महीने रहना था ,तो ,मैने सोच लिया कि में पूना के आसपास के दर्शनीय एवम ऐतिहासिक स्थलों को भी लगे हाथ घूम लूं ।इसी संदर्भ में मैने देखा कि यहां से नांदेड़ काफी समीप है ,तो अविलंब हजूर साहिब ,गुरुद्वारे के दर्शनों का प्रोग्राम बना लिया ।
जुलाई का महीना ,पश्चिमी महाराष्ट्र जिसमे बंबई ,पूना ,सतारा ,कोल्हापुर ,रत्नागिरी आदि शहर आते हैं ,मानसून की वर्षा के लिए ” कुख्यात ” है ,वो ऐसे कि उत्तर भारत में ,बरसात ,अक्सर किश्तों में ,यानी तीन चार दिन में एक बार ही होती है ,वहीं दक्षिण,पश्चिम भारत में ,बारिश की फुहारें लगातार कई कई दिनों तक ,चौबीसों घंटे पड़ती रहती है ,लेकिन एक बात तो है कि इस समय ये शहर ,घूमने के लिए सर्वोत्तम होता है ।तो मैंने भी बारह जुलाई को ,रात्रि की ट्रेन से ,सीधे नांदेड़ जाने की तैयारी कर ली ।
शाम के सात बजे ,जब ट्रेन चली तो ट्रेन के साथ ,बरसात की फुहारें भी ,रात भर ,मेरे साथ साथ ही चलती रही ।
सुबह ,सात बजे , जब मैं ” हुजूर साहब नांदेड़ ” स्टेशन पर उतरा तो बरसात भी पूरी ताकत से ,बरस रही थी ।मैने चूंकि पहले ही स्टेशन से एक किलोमीटर की दूरी पर होटल “” गुरु कृपा इन ” में कमरा बुक कर लिया था ,इस लिए ऑटो पकड़ ,दस मिनट के बाद ही मैं ,इस होटल में पहुंच गया ।जब ,काउंटर पर पहुंचा तो ,देखा ,रिसेप्शनिस्ट अंधेरे में बैठे हुए है ।मैने अपने मोबाइल को खोलते हुए ,उस से इस अंधेरे का कारण पूछा तो बोला ,दो दिन से लाइट नही आ रही है ,पूरा शहर अंधेरे में डूबा हुआ है ।हक्का बक्का ,सा, मैं बोला ,अरे भाई अंधेरे में कैसे रहेंगे , जनेरेटर क्यों नही चलते हो , तो जवाब आया ,महाराष्ट्र में बिजली कभी कभार ही जाती है इस लिए यहां किसी के पास जेनरेटर नही होता है ,”” तो भाई ,अंधेरे में कैसे रहूंगा ,”” कह , मैं वापस ,बाहर खड़े ऑटो की ओर लपका ।
चूंकि नांदेड़ एक मध्यम आकार का शहर है , गुरुद्वारा हुजूर साहिब ,इस होटल से एक किलोमीटर पास में ही था ,तो मैने सोचा कि जैसे ही बारिश बंद होगी ,या हल्की होगी तो ,सबसे पहले मैं ,गुरुद्वारा ही जाऊंगा ,उसके बाद ही ,इस शहर के अन्य पर्यटक आकर्षण के क्षेत्रों में घूमने जाऊंगा ।अब तक आटो वाले का धैर्य भी खतम होने लगा था ।बड़ी ही मुश्किल से , और ज्यादा पैसे देने से ही वो मुझे, रहने के लिए कहीं और ले जाने को राजी हुआ ।अब मैने उसे गुरुद्वारे के आस पास जाने के लिए कहा,क्योंकि मुझे पता था कि वहां सिक्ख यात्रियों के लिए विशेष रहने का इंतजाम होता है ।
नांदेड़ साहब के मुख्य गुरुद्वारे के सामने जब में पहुंचा तो ,संयोगवश वर्षा थोड़ी हल्की पड़ने लगी । मैं आटो से उतर ,सामने बने यात्री निवास पर पहुंचा तो काउंटर पर ,बैठे व्यक्ति ने इशारा किया कि कोई कमरा खाली नही है ।निराश,बरसात में भीगता मैने इधर उधर देखा ,सामने थोड़ी दूर पर, और एक निवास स्थान है तो मैं वहीं जा पहुंचा ।मगर वहां स्पष्ट जवाब मिला कि हम अकेले को कमरा नही देते हैं ,बहुत कहने पर भी कुछ फायदा नही हुआ ।निराश ,असमंजस में खड़ा , मैं अब किधर जाऊं,यही सोचने में लगा था कि बी,शायद तरस खा कर ,सामने खड़े एक सिख ने कहा ,आप ,इस गुरुद्वारे के ठीक पीछे ,गेट नंबर चार पर जा के देखो ,वहां भी एक निवास है ,शायद आप को वहां रूम मिल जाए ।
निराश हो ,बड़बड़ाते आटो वाले के साथ ,,घूम कर मैं ,गेट नंबर चार के सामने पहुंचा तो देखा एक सात मंजिला ,सिक्ख यात्री निवास है ।अंदर घुस ,जब मैने कमरे के लिए कहा तो वही उत्तर ,””अकेले के लिए नही”” ,, तब मैने ,आखिर कार तुरुप की चाल चली ,, “” मैं एस बी आई का मेनेजर हूं ,बड़ी ही श्रृद्धा से गुरु के दर्शन करने ,इस खराब मौसम में भी ,बहुत दूर मथुरा से आया हूं ,कुछ तो सोचिए”” ! अब एसबीआई शब्द का प्रभाव पड़ना ही था , शायद इसी से प्रभावित हो कर, मुझे वे , रूम देने को राजी हो गए ।अनेकों बार की तरह,इस बार भी मुझे ,अपने एसबीआई कर्मी होने पर गर्व का अहसास हुआ !मैने तुरंत दो दिनों के लिए एडवास जमा कर दिए ।
कमरा काफी बड़ा ,आरामदायक था ।सब कुछ था उसमे जो होटल में होता है ,पर सबसे बड़ी बात कि बिजली आ रही थी,पता करने पर बताया कि गुरुद्वारे की सेवा व्यवस्था में होने के कारण ,गुरुद्वारे के जेनेटेयर से बिजली मिल रही है ।बारिश अभी भी तेज हो रही थी ।कमरे ढूंढने के चक्कर मैं पूरी तरह भीग चुका था ।इस लिए पहले मैने कपड़े बदले ,फिर दो घंटे की थकान और ठंड से आराम पाने को मैं गरम कंबल में घुस ही गया ।
दो घंटे के आराम के बाद , मैं उठा ,गीजर के गर्म पानी से स्नान किया ,स्नान करते करते ही मुझे भूख का जोरदार अहसास हुआ ।तैयार हो ,कमरा बंद कर ,बाहर सामने ही गुरुद्वारे के गेट नंबर चार से ,बारिश के बीच ही मैं ,अपने बहु प्रतीक्षित ,गुरुद्वारा श्री अचल साहिब ,सचखंड नांदेड़ जी के दर्शनों के लिए ,प्रवेश कर गया ।
सबसे पहले मैं आपको ,सिखों के इस सबसे पवित्र ,गुरुद्वारे के इतिहास के बारे में बताना चाहुंगा ।महाराष्ट्र में औरंगाबाद के सबसे बड़े क्षेत्र में ये गुरुद्वारा ,सिक्खों के पांच तख्तों में से एक है ।गोदावरी नदी के किनारे, सन 1832.से 1837 के बीच ,इस गुरुद्वारे का निर्माण ,महाराजा रणजीत जी के अनुरोध पर ,यहां के शासक ,मीर अकबर अली खान सिकंदर एवम आसिफ शाह तृतीय ने करवाया था ।सन 1708 में , सिक्खों के अंतिम गुरु,गुरु गोविंद जी ने,अपने अनुयायियों तथा अपने प्रिय घोड़े दिलबाग के साथ ,धर्म प्रचार के लिए यहां डेरा डाला हुआ था ।परंतु सरहिंद के नवाब वजीर शाह ने अपने दो आदमियों को यहां भेज कर धोखे से गुरु जी की हत्या कर दी थी ।अपनी मृत्यु को समीप देख कर गुरु गोविंद जी ने ,अपने बाद किसी अन्य को गुरु चुनने के बजाय ,श्री गुरु गृंथ साहिब को ही अपना दसवां और अंतिम गुरु मानने की ऐतिहासिक , आज्ञा दी थी ,जिसको पूरी तरह ,पूरे विश्व के सिक्ख ,पूरी श्रृद्धा के साथ मानते हैं ।उनके अनुसार ** आज्ञा भाई अकाल की तभी चलायो पंथ ,सब सिक्खन को हुक्म है ,गुरु मानो ग्रंथ **,तब से श्री गुरुग्रंथ साहिब जी को ,सिक्खों ने, गुरु रूप में अपना लिया था । ऐसे ऐतिहासिक धार्मिक स्थान पर ,आ कर मुझे ,आज बड़ा ही संतोष का अनुभव हो रहा था ।
नांदेड़ स्थित, इस गुरुद्वारे के स्थान को सच खंड ,अर्थात सत्य का क्षेत्र कहते हैं ,ये गुरुद्वारा भी उसी स्थान पर बनाया गया है जहां गुरु गोबिंद जी ज्योत रूप में,परमात्मा में लीन हो गए थे । अब ऐसे पवित्र स्थान को ,अपने स्वयं की आंखों से, साक्षात देखने की ,बरसों पुरानी मेरी इच्छा आज परिपूर्ण हो रही थी ।
गेट नंबर चार से जैसे ही मैने गुरुद्वारे में प्रवेश किया ,उसकी भव्यता ,विशालता ,उसके सफेद संगमरमर के निर्माण ने मुझे अत्यधिक प्रभावित कर दिया ।वर्षा के बावजूद भी ,मेरी तरह सैकड़ों यात्री इस पवित्रतम गुरुद्वारे की परिक्रमा में ,कानों में गूंजते ,शब्द पाठ को ग्रहण करते ,एक अलग ही दुनिया का अहसास महसूस करा रहे थे ।
सारी थकान ,ठंड ,कष्ट विस्मृत कर , मैं अपने को उस युग में प्रवेश करता देख रहा था जब सिक्खों के अंतिम गुरु गोबिंद जी इस पवित्र क्षेत्र पर ,अपने श्री मुख से ,सम्मुख बैठे अनुयाइयों को अमृत पान करा रहे थे ।
कल्पना के इन्ही सुखद क्षणों में अपने को विस्मृत कर ,ना जाने में कब तक इस सचखंड गुरुद्वारे के भक्ति सौंदर्य का पान करता रहा , करता रहा ,जब तक कि एक श्रृद्धालु ने मुझे भोजन के लिए लंगर घर में जाने का इशारा नही किया ।श्रृद्धा से फिर से एक बार ,गुरुद्वारे की चौखट पर अपने शीश को नवा , मैं, दूर एक कौने में स्थित लंगर घर की ओर ,बरसात में अपने को भिगोता चल पड़ा।
गुरुद्वारों की एक बात जो मुझे सबसे अधिक प्रभावित करती है वो है ,सारे भेदभाव ,ऊंचनीच ,छोटा बड़ा ,सबको भुला कर एक साथ ,प्रेम से भोजन करना, कराना ।धन्य है गुरु लोग ,जिन्होंने इतनी बड़ी बात समझी कि जब तक आदमी का पेट खाली रहेगा ,उसे धर्म की कोई बात समझ नही आयेगी ,इस के अलावा भूख, ,आदमियों में ,चाहे वो किसी भी जाति ,धर्म के हों ,एक जैसी होती है ।चौबीसों घंटे , हर दिन ,सुबह हो या शाम ,गुरु का लंगर सबके लिए उपलब्ध होता है । मैं भी लंगर भवन में बैठ गया , और क्षण भर में ही मेरे सामने भोजन रूपी प्रसाद ,अमृत के समान मेरे सम्मुख था ।दोनो हाथ जोड़ ,गुरुओं को धन्यवाद देते हुए मैने अपनी भूख और थकान मिटाई ,फिर से एक बार गुरुद्वारे में शीश झुकाया , और ,लगातार बरसती बारिश में भीगता हुआ अपने कमरे में पहुंचा
शाम होने को आई ,परंतु बारिश को न तो रुकना था ,ना ही रुकी ।नांदेड़ में मेरा प्रोग्राम दो दिन का था ,जिसमे पहले दिन श्री गुरुद्वारे के दर्शन करना तो दूसरे दिन ,नांदेड़ शहर के साथ बहती गोदावरी में स्नान करना एवम कुछ पर्यटक स्थलों में घूमना था ।लेकिन ,धीरे धीरे समझ आने लगा कि इतनी तेज बारिश में होटल से बाहर निकलना ही मुश्किल है घूमना तो दूर की बात थी ।खिड़की से बाहर ,कुछ कुछ देर बाद झांकता कि बादल खुलने का कोई संकेत दिखाई दे ,पर हर बार ,निराशा ।अब मेरे पास इसके सिवा कोई चारा नही था कि मैं कल भी इसी तरह ,कमरे में पड़ा रहूं क्यों कि वापस पूना लौटने के लिए मैने अगले दिन के शाम की ट्रेन में सीट रिजर्व पहले ही से करा रखी थी ।
शाम तक मैं ऐसे ही कमरे में पड़ा रहा ,बारिश इतनी , कि सामने गुरुद्वारे में भी जाने की हिम्मत नही ,तो नांदेड़ शहर कैसे घूमता ।इसी सोच विचार में ,मैने मोबाइल उठाया , और देखने लगा कि नांदेड़ के आस पास और कौन से शहर हैं जहां जाया जा सकता है ।तभी नजर टिकी हैदराबाद पर ।वहां का मौसम की जानकारी ली तो पता लगा ,कल वहां का मौसम थोड़ा साफ है ,फिर नांदेड़ से हैदराबाद की ट्रेन देखी ,वो भी रात के ग्यारह बजे की थी जो सुबह छः बजे वहां पर पहुंचती थी , और फिर सीट मिलने की संभावना देखी तो वो भी “ऐसी” में खाली थी ।
अब मेरे घुमक्कड़ दिल को क्या चाहिए था ।तुरंत ही पूना की वापसी की टिकट कैंसिल की ,हैदराबाद की टिकट बुक की ।लगे हाथ ,हैदराबाद से वापस सीधे पुणे की टिकट देखी तो , कमाल हो गया ! वो भी मुझे मिल गई ।बस मुझे नांदेड़ की लगातार बरसती बरसात से पिंड छुड़ाने का मौका मिल ही गया ।
चूंकि ट्रेन देर रात की थी इस लिए , अभी मेरे पास काफी समय था ।तभी मेरे कानों में गुरुद्वारे के शब्द कीर्तन ,शाम की अरदास के स्वर सुनाई दिए ।मैने इस अवसर का एक बार पुनः लाभ उठाने का निश्चय किया ,सामान पैक किया ,ओर सीधे गुरुद्वारे की ओर ,बारिश से बचता बचाता चल पड़ा ।
शाम के अंधेरे में ,बिजली की जगमगाती बिरंगी रोशिनियों से नहाता ,श्री नांदेड़ जी गुरुद्वारा एक अद्भुत सौंदर्य का अनुभव करा रहा था ।चारों ओर सिक्ख श्रृद्धालुओं की भीड़ ,पूजा प्रार्थना में डूबी हुई थी ।इतनी श्रद्धा शायद ही मैने किसी अन्य पूजा स्थलों में देखी होगी । मैं भी हाथ जोड़े ,आंख मूंदे उस समय की कल्पना में खो गया जब गुरु गोबिंद जी इस स्थान पर ऐसे ही प्रार्थना कर रहे होंगे ।
कुछ समय बाद ,अरदास समाप्त हो गई ,श्रृद्धालु, गुरु की जय जय कार करने लगे ,तभी मैने देखा ,मुख्य गुरुद्वारे के ठीक बीच, एक कमरा चारों ओर से खोल दिया गया।उसके खुलते ही सारे यात्री उस कमरे की चारों ओर बने दरवाजे की चौखटों पर सिर रख कर प्रणाम करने लगे ।कुछ देर बाद मुझे भी चौखट पर सिर झुकाने का सुअवसर मिला ।अंदर का दृश्य अत्यधिक अद्भुत था ।कमरे के ठीक बीच एक छोटा सा चबूतरा था ,जिस पर गुरु गोविंद जी की फोटो सजी हुई थी ।उस चबूतरे को सोने से मंढा हुआ था ,जिसके चारों ओर ,गुरुजी के समय के विभिन्न शस्त्र ,तलवारें आदि अनेकों ऐतिहासिक वस्तुएं रखी हुई थी ।उस समय ऐसा प्रतीत हुआ , जैसे कि मैं स्वयं उस पुराने समय का ही एक अंश बन गया हूं ।अधिक वर्णन करने में , मैं इस समय असमर्थ हूं ,क्योंकि कुछ बातों को आप स्वयं ही , वहां उपस्थित होकर ही महसूस कर सकते हैं
आंखे बंद कर ,हिंदू एवम सिक्ख धर्म की रक्षा में अपने प्राणों का बलिदान देने वाले ,गुरु गोबिंद जी के सम्मुख ,अपनी श्रृद्धा प्रगट कर ,हाथ जोड़ते ,जीवन में मिले इस सुअवसर पर इतराते में बाहर आ गया । गुरुद्वारे के मुख्य दरवाजे पर शीश झुकाते मैं ,वापस अपने कमरे में लौट आया ।अभी रात के नौ ही बजे थे ,सोचा ,देर रात स्टेशन तक कोई ऑटो मिले ,ना मिले इस लिए अभी ही स्टेशन पहुंच जाने में ही भलाई है ,साथ ही स्टेशन के आसपास ,कोई अच्छा सा खाने का होटल भी मिल जाएगा ,भले ही बारिश हो रही हो ।
कुछ ही देर में मैं स्टेशन के सामने ,एक मध्यम आकार के रेस्टोरेंट में बैठा ,वही शाकाहारी भोजन ,तंदूरी रोटी , मां की दाल तथा कढ़ाई पनीर खाने में लगा था ।इस समय ,स्वाद की नही ,पेट भरने की ही बात थी ! पेट भरने के बाद मैं प्लेटफार्म पर आ गया ।रात्रि का समय ,लगातार होती बारिश के कारण गिने चुने ही यात्री दिखाई दे रहे थे ।आधे घंटे बाद ही ,हैदराबाद जाने वाली मेरी ट्रेन आ गई ,अपनी नियत सीट पर बैठ ,एक बार दूर ही से सही ,गुरुद्वारा अचल साहिब ,नांदेड़ जी की तरफ हाथ जोड़े , और ,दिन भर की थकान होने के कारण ,शीघ्र ही ,निंद्रा देवी की गोद में समा गया ।
जो बोले सो निहाल : ससरिय कार
Super.. Amazing pic.. Outstanding narration
Beautifully written, love the photos and description.