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    अद्भुत रामानुजाचार्य आश्रम की यात्रा

    पिछले पोस्ट से आगे बढते  है, अंदर प्रवेश करते ही लगा ,जैसे हम इस समय हैदराबाद में नही ,बल्कि धुर दक्षिण भारत के किसी आश्रम में खड़े हैं ।सबसे पहले हमारी नजर गई ,,आकाश को चूमती ,विशाल घेरे वाली ,पीले रंग की एक ध्यान मग्न सन्यासी की मूर्ति पर ,जो अपने कंधे पर ध्वज दंड रखे ,दोनो हाथों को जोड़े ,गहरे ध्यान में डूबे हुए थे । हम अभी मंत्रमुग्ध से इस प्रभावशाली ,विशाल आकर की मूर्ति को देख ही रहे थे कि अचानक एक बार फिर से ,दक्षिण भारतीय भजन गूंजने लगे ।

    देखा तो सामने एक बहुत ही चौड़ा पानी का फुव्वारा ,संगीत की लहरों के साथ अपनी धाराएं बिखेरने लगा ।उस विशाल चौड़े फव्वारे के ठीक मध्य में एक दस फुट की गोलाई लिए ,पीतल एवम कांसे की विभिन्न आकर्तियों से बना ,चालीस फुट से भी ऊंचा ,खंबा खड़ा था ,जिसके ठीक ऊपर ,धातु के बने ,कमल के फूल की पत्तियां ,धीरे धीरे खुल रही थी , और उनके ठीक बीच , बैठने की ही मुद्रा में ,रामानुजाचार्य जी की छोटी सी मूर्ति ,धीरे धीरे ,खंबे के ऊपर घूम रही थी ।

     

    अब आप समझ सकते हैं कि ,संगीत की धुन में झूमती पानी की लहरें ,रंग बिरंगी ,जलती बुझती लाइटें , ऊपर घूमती मूर्ति ,,उस पर कमाल यह कि संध्या के समय ,आकाश में उमड़ते ,काले काले , बरसने को तैयार मेघ ,वातावरण में एक ऐसा अनोखा सम्मोहन पैदा कर रहा था कि  ,हमारे सहित,  आस पास खड़े सैकड़ों दर्शक ,मंत्र मुग्ध हुए से खड़े थे ।

         

    लगभग बीस मिनट के बाद संगीत की धुन जैसे ही बजना बंद हुई ,हम सब वास्तविक दुनिया में लौट आए ।अब हम चले, दूर ऊपर मूर्ति की ओर ,जहां पहुंचने के लिए सौ के लगभग सीढियां जा रही थी ।जैसे जैसे हम इन सीढ़ियों से ऊपर चढ़ते गए ,हमारे आसपास की दृश्याबली बदलती गई ।कुछ ऊपर चढ़ ,हमने अपने चारों ओर नजर घुमाई तो  सामने नीचे दिखाई दिया वो लाल पत्थरों का मैदान ,जिस तरफ से हो कर हम आए थे ।हमारे बाईं ओर ,काले रंग के छोटे छोटे मंदिर बने हुए थे जो एक लाइन में बने ,आश्रम के पीछे से होते हुए ,हमारी दाईं ओर तक बने आ रहे थे ।

    जानकारी करने पर पता चला ,ये श्री हरी विष्णु जी के एक सौ आठ मंदिर है ,जिनमे पूरे भारत के ,जितने भी ,विष्णु जी के मंदिर है ,उनकी मूर्तियों की अनुकृति इनमे स्थापित की गई है ।एक विशेष बात और पता चली कि ,इन प्रत्येक एक सौ आठ  मंदिर की मूर्ति के लिए एक सौ आठ ही पुजारी भी पूजा अर्चना के लिए नियुक्त किए गए है ,साथ ही प्रत्येक मूर्ति का श्रृंगार असली, कीमती हीरे , और सोने के जवाहरातों से किया गया है ।साथ ही प्रत्येक मंदिर का शिखर की बनावट एक दम अलग है ,कोई भी शिखर ,दूसरे शिखर के समान नही है ।

     हम जहां खड़े थे ,वो सारा क्षेत्र ही नही ,पूरा का पूरा आश्रम ,एक विशेष प्रकार के ,चिकने लाल पत्थरों से ही बना हुआ था ।

     

     

     जब हम सौ सीढियां चढ़ कर ठीक ,डेढ़ सौ फुट की ऊंचाई पर ,मुख्य ,मूर्ति के पास पहुंचे ,हमारी आंखे खुली की खुली रह गई । पांच धातुओं ,सोना ,तांबा , जस्ता,चांदी,ओर पीतल से बनी इस विशाल ,भव्य मूर्ति के सामने हम एक दम बौने लग रहे थे ।इस के ऊपरी हिस्से को देखने में हमारी गर्दन एक दम, नब्बे डिग्री का ही कोण बनाने को विवश थी ।

     

    यह मूर्ति  एक विशाल पीले धातु के खिलते कमल की पंखुड़ियों के ठीक बीच में बैठी हुई मुद्रा में थी ।इन पंखड़ियो के नीचे की सतह पर एक सौ आठ ही, पीतल से निर्मित हाथी ,अपनी ऊंची उठी सूंड से पानी की धारा छोड़ते हुए ,मूर्ति के चारों ओर ,गोलाई में बने थे । 

     

    ये सब अत्यंत ही प्रभावशाली ,दर्शनीय ,एक अलग ही दुनिया में ले जाने वाला दृश्य प्रभाव था ।   ये मूर्ति ग्यारहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध समाज सुधारक  संत श्री रामानुजाचार्य जी ,जिन्होंने समाज में ऊंच नीच ,भेदभाव की समाप्ति के लिए अलख जगाया था,की दुनिया में बैठी हुई अवस्था में दूसरी सबसे बड़ी मूर्ति है ,जिसके सम्मुख हम खड़े थे ।हम ने इतने ऊपर से ,मूर्ति के चारों ओर ,दूर दूर के नजारे देखते हुए ,चक्कर लगाए ,नीचे के नजारे इतने छोटे लग रहे थे जैसे कि हम किसी हवाई जहाज में बैठे नीचे को देख रहे हैं ।लगभग तीन महीने पहले प्रधानमंत्री श्री मोदी ने ,इस मूर्ति एवम आश्रम का उदघाटन ,किया था ।उस समय लेज़र की लाइटों से इसका सौंदर्य देखते ही बनता था ।

           

     

    कुछ देर ऐसे ही हम इन सबका आनंद लेते रहे ,फिर ,धीरे धीरे नीचे ,उतर ,इस आश्रम के प्रभावशाली निर्माण को सराहते हुए ,मोबाइल से इन क्षणों को कैद करते हुए ,जब वापस जाने के लिए , कार में बैठे ,तब तक रात के नौ बज चुके थे 

         अब भूख तो लगनी शुरू हो ही गई थी ,तो भोजन करने के लिए शहर हैदराबाद की ओर चल ही दिए । आधे घंटे बाद जब शहर में प्रवेश किया तो ये तो पहले ही से निश्चित था कि यहां खाने में केवल यहां की ही नही,पूरे भारत में प्रसिद्ध “” हैदराबाद की पैराडाइज “” की बिरयानी ही खानी है ,इस लिए सीधे वहीं ही जा कर रुके ।

         

     

    ये पैराडाइज बिरयानी हाउस सौ वर्ष से भी अधिक पुराना है । भारत के अनेकों सेलेब्रेटिज यहां की बिरयानी का स्वाद ले चुके है ,जिनकी फोटो ,इस होटल की दीवारों पर सजी हुई है । बैठते ही हमने बिरयानी का ऑडर दिया , और ,मुंह में आए पानी को जबरदस्ती रोकते ,बैचेनी से ,इसका इंतजार करने लगे  बस अब यही कहना है , कि इस अद्भुत बिरयानी के स्वाद लेने के बाद ,प्रसिद्ध रामानुज के आश्रम की इस विशाल मूर्ति को देख कर ,मेरी इस हैदराबाद शहर की यात्रा जैसे पूरी हो गई ।

    ( विशेष :: जैसे की मैने पूर्व में वर्णन किया है कि पेराडाइज की बिरयानी के नाम पर ,मेरे जीजा श्री ने ,अच्छा रिस्पॉन्स नही दिया था ,तो उसका कारण ,बिरयानी खाने के बाद ही पता चला ।मैने ऊपर के लेख में भले ही पैराडाइज बिरयानी की प्रशंसा की है ,पर ,वास्तविकता ये है कि अब इस बिरयानी का स्वाद ,मूल बिरयानी जैसा नही रहा है ,समय के परिवर्तन के कारण ये ,बिरयानी कम,चावल का पुलाव जैसा अधिक हो गया है ,इस लिए ,अगर मेरा ये ब्लॉग पढ़ कर आप पैराडाइज में बिरयानी खाने जाएं ,तो मुझे दोष नही दीजिएगा ।ये तो ब्लॉग के कारण तारीफ लिखनी पड़ी है )

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    1. यात्रा का खूबसूरत विस्तृत वर्णन मुग्ध करने वाला है ‌। नया निर्माण हुआ है और अति सुंदर भी है। देखे कभी जाना होता है कि नहीं। पहले तो था नहीं तो आनंद नहीं ले पाए।
      अपनी यात्राओं का विवरण इसी तरह देते रहें लिखते रहें और हम लोग पढ़कर आनंद लेते रहे , धन्यवाद।

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