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    चित्रकूट धाम: ओछरा से चित्रकूट की यात्रा

    पिछले पोस्ट से आगे बड़ते हुए, ओरछा से बाहर गुगल बाबा के दिखाए मार्ग पर चित्रकूट जाने हेतु ,लगभग दस किलोमीटर के बाद एक हाइवे दिखाई दिया।सामने लगे बड़े से एक बोर्ड ने गुगल के दिखाए मार्ग की पुष्टि कर दी ,एवम बोर्ड पर लगे निर्देश के अनुसार हम उस हाइवे पर चढ़ गए और चलपड़े सीधे छतरपुर महोबा की ओर।गुगल बाबा के अनुसार हम चित्रकूट के लिए यहां से पहले छतरपुर ,फिर महोबा शहर तब चित्रकूट धाम पहुंचते।शाम के चार बजने जा रहे थे।हमारी अभीष्ट दूरी अभी भी तीन सौ किलोमीटर की थी।हम समझ गए थे कि चित्रकूट हम रात के नौ बजे से पहले नही पहुंच पाएंगे।

         हाइवे पर चलते हुए अभी हमे पंद्रह मिनट ही हुए थे कि अचानक इस द्वि मार्गीय से हमे सड़क के दूसरी ओर जाने के संकेत दिखाई दिए ।अब हमारी कार की गति कम होनी थी क्योंकि सामने से भी वाहन आ रहे थे।कुछ किलोमीटर चलने के बाद पुनः हमे बाईं ओर चलने के संकेत दिखे

    बस ये समझ लीजिए कि कभी दाएं तो कभी बाएं हमारा सफर हो रहा था ,इसका मुख्य कारण था ये हाइवे अभी निर्माणाधीन था।हम जिस तरफ भी मुड़ते ,मार्ग के दूसरी ओर सड़क निर्माण का कार्य चल रहा होता !अब आप समझ ही गए होंगे कि हमारे चित्रकूट समय पर पहुंचने की आशा धूमिल पड़ती जा रही थी।अभी हम छतरपुर से कोई पचास किलोमीटर दूर ही थे ,घड़ी में शाम के छः बजने को हो  रहे थे कि मोबाइल की घंटी बज उठी।देखा तो भोपाल में रहने वाले मेरे साढू भाई योगेंद्र जी का फोन था।अब बात करना जरूरी हो गया था क्योंकि मैने यात्रा आरंभ करते हुए आपको बताया ही था कि ” इधर हमारी श्रीमती जी ,शताब्दी एक्स प्रेस से भोपाल रवाना हुई ,हम चित्रकूट धाम की ओर रवाना हो गए थे “। साढू भाई से मेरे मित्रवत संबंध थे इस लिए बातों बातों में मैने उन्हे बता दिया कि मैं इस समय चित्रकूट के मार्ग पर हूं और अपने मित्र जे पी  के साथ कार से जा रहा हूं।मेरी ये बात सुनकर वे हंसने लगे तो मैने फिर कहा ,भाई जान हमारी श्रीमती आपके शहर में ही हैं तो आप उन्हें इस बाबत कुछ मत बताइएगा ! उत्तर में उन्होंने सहमति जताई फिर कहा कि उनके ऑफिस के सहकर्मी के चित्रकूट के सबसे बड़े आश्रम के गुरुजी से अच्छे संबंध है ,आश्रम भी अच्छा है ,अगर आप कहें तो आपके चित्रकूट प्रवास के लिए उनके यहां व्यवस्था करवादें। मैने असहमति जताते हुए कहा कि नही हम आश्रम में रुकने के अनिच्छुक हैं ,हम किसी बढ़िया होटल में रुकेंगे।कुछ और साधारण बातों के बाद हम फोन बंद कर यात्रा का आनंद लेते हुए आगे बढ़ते रहे।    

    चित्रकूट पहुंचने से पहले मैं आपको इस धाम के बारे में कुछ जानकारी दे दूं।चित्रकूट एक बहुत ही छोटा लेकिन बहुत ही मनोरम स्थान है। मैं आज से कोई बीस वर्ष पूर्व जब वहां पहली बार गया था तो उस शहर की कुछ विशेषताएं मुझे इतनी भाईं की मैंने निश्चय किया था कि जब कभी मुझे अवसर प्राप्त होगा मैं यहां पुनः आऊंगा , और देखिए पुनः आने में बीस वर्ष लग गए थे।चित्रकूट ,जैसे कि मैने पहले बताया था यह एक बहुत ही छोटा और मनोरम स्थल है। यह इतना मनोरम है कि वनवास के समय स्वयं भगवान श्री राम ने अपनी पत्नी  सीता और छोटे भाई लक्ष्मण के साथ वनवास के साढ़े ग्यारह वर्ष यहीं बिताए थे।

     

    चित्रकूट शहर के चारों ओर छोटे छोटे पहाड़ हैं जो हरियाली से पूरे भरे हुए हैं। इन्ही पहाड़ियों में भगवान राम के तपस्या के कार्यकाल की कुछ निशानियां भी बताई जाती है ,जिनमे कुछ गुफाएं भी है।ये शहर अपने ठीक बीच में बहने वाली एक छोटी सी उथली नदी मंडाकनी जो कि यमुना नदी की सहायक नदी भी है के कारण और मनोरम हो गया है।इसके अतिरिक्त इस शहर से कुछ ही दूरी पर पर्वत के अंदर से गोदावरी नदी भी निकलती है जिसका उदगम स्थल पर्वत के ठीक अंदर पचास फुट है , जहां पर यात्री घुटने तक पानी में चलकर इस मनोरम दृश्य का आनंद लेते हैं।साथ ही शहर से कुछ और दूरी पर एक पर्वत के बिल्कुल ऊपर हनुमान जी की मूर्ति स्थापित है जिसकी विशेषता है कि इस मूर्ति के सर पर पानी की एक धारा गिरती है जिसके बारे में कई कथाएं प्रचिलित  है साथ ही इस पर्वत की चोटी से पूरे शहर के दृश्य मन को मोह लेते हैं। 

     

      इस शहर की एक और बड़ी विशेषता है कि ये शहर दो प्रदेशों ,उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश में बटा हुआ है जिसकी उदाहरण का भारत में शायद ही कोई अन्य शहर हो।अगर आप इस शहर का भ्रमण करते है तो आप पाते हैं कि एक गली खत्म होते ही बोर्ड लगा है कि आपका उत्तर प्रदेश में स्वागत है ,दूसरी गली पार करते ही बोर्ड लगा होता है ,आपका मध्य प्रदेश में स्वागत है।यहां तक कि इसकी छोटी सी नगर पालिका भी दो हिस्सों में बंटी हुई है जिसमे प्रत्येक के अपने कर्मचारी होते हैं।ये शहर इतना छोटा है कि आप इसे पैदल ही पूरा घूम सकते है।इसकी कई अन्य विशेषताएं हैं जिनका आनंद का  शब्दो  में वर्णन करना मेरे लिए तो असंभव ही है।भगवान राम से संबंधित होने के कारण हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए ये एक महत्व पूर्ण तीर्थ स्थल भी है।

     

    बस मेरा आपसे इतना ही अनुरोध है कि आप अगर भ्रमण प्रेमी हों,किसी भी धर्म के अनुयाई हों ,एक बार तो यहां घूमने अवश्य आइए परंतु एक बात जरूर ध्यान रखें ,यहां घूमने का प्रोग्राम सर्दियों की ऋतु में ही बनाइए ,अन्यथा आप भी वैसे ही परेशान होंगे ,जैसे की हम हो रहें है या होने वाले हैं ,!!

         तो बात ही रही थी हमारी इस शहर की यात्रा की।अब जब हम इस हाइवे पर चलते हुए इसके किनारे लगे एक बोर्ड को देख चौंके ,जिसमे लिखा था ” छतरपुर 15 तथा महोबा शहर 25 किलोमीटर ,साथ ही हमारे बाईं ओर जाती एक छोटी सी सड़क जिस के किनारे महोबा का तीर बना था।हमने कार रोकी , और असमंजस में पड़े जे पी भाई से विचार विमर्श करने लगे । अगर हम छतरपुर से महोबा जाते है तो हमें इस बाईं ओर सीधे महोबा जाती छोटी सी सड़क से लगभग 30 किलोमीटर अधिक चलना पड़ेगा ,जबकि हमें जाना तो महोबा ही था।गुगल बाबा ने भी हमारी बात का समर्थन किया तो हमने समय एवम पेट्रोल की बचत के चक्कर में इस छोटे मार्ग से जाने का निर्णय लिया।घड़ी में अब साढ़े छ: बजे का समय हो चुका था ,सूर्य देवता अपने विश्राम के लिए अस्त होने जा रहे थे !

         अब क्या बताएं ,आज भी जब हम अपने इस निर्णय के बारे में सोचते हैं तो सर पीटने लगते हैं ! अभी हम इस छोटी सड़क पर तीन या चार किलोमीटर ही चले थे कि ये छोटी सी सड़क और छोटी हो गई क्यों ,वो इस लिए कि आगे ये सड़क सीमेंट से पक्की की जा रही थी ,जिसका निर्माण कार्य चल रहा था ,एवम उस बनते हिस्से पर चलना असंभव ही था।तभी हमे समझ आया कि इतनी दूर चलते हुए भी कोई अन्य वाहन हमें ना तो आता मिला ,ना ही जाता मिला ।अब कोढ़ में घाव कि पहले ही से आधे हुई सड़क पर सड़क निर्माण में लगे वाहनों को निकालने देने के लिए काफी दूर ही से हमें अपनी कार रोकनी पड़ती थी।पहले ही से लेट हुए हम और लेट होते जा रहे थे।

     

    कुछ ही देर में घुप अंधेरा छा गया।दूर दूर तक ना तो कोई गांव ना ही कोई रोशनी ।बस कभी कभी दूर किन्ही गांवों की झिलमिलाती रोशनी हमे धैर्य प्रदान करती।धीरे धीरे चल रहे थे कि अचानक कार  के डैशबोर्ड पर पीली लाइट जल उठी।ओह ! इस भागमभाग में हमारा ध्यान पेट्रोल भरवाने की ओर गया ही नहीं था।हम दोनों ने एक दूसरे की ओर मायूसी से देखा और ये सोचते हुए कि जब परिस्थितियों पर हमारा जोर नही तो क्यों हम उसकी चिंता करें ,बस जो होगा देखा जायेगा कि भावना से इस निर्जन ,अनजानी सड़क पर इस आशा से चलते रहे कि शायद कोई भुला भटका पेट्रोल पंप मिल जायेगा,अन्यथा सड़क के किनारे रात्रि विश्राम ही करेंगे।हमने अपनी कार की गति और कम करदी थी ,ये सोच कर कि इस से शायद कम पेट्रोल लगेगा और हम कुछ और दूरी तय कर पायेंगे।सच कहता हूं हमारे अब तक की यात्राओं में ऐसा संयोग अभी तक हमें नही मिला था पर तभी एक चमत्कार ही हो गया कुछ दूरी पर एक पेट्रोल पंप की रोशनी दिखाई दी ! हम अब तेजी से सब भुला कर उसकी ओर बढ़ चले , और जब वहां तक पहुंचे तो देखा कि पंप का कर्मचारी पंप बंद कर रहा था।अब ये कोई लिखने की बात नही है कि कितनी चिरौरी ,अनुरोध,मजबूरी दिखाने के बाद वो हमें पेट्रोल देने को राजी हुआ !

        पेट्रोल भरते ,उसे अनेकों धन्यवाद देते हम।अब तेजी से अपनी मंजिल महोबा की ओर बढ़ते गए ।जब एक घंटे की ओर देरी के बाद हम महोबा शहर जो कि एक काफी बड़ा शहर है पहुंचे तो हमें अब पूर्ण संतोष ,विश्वास हो गया कि अब देरी से ही सही अपनी ,बहु प्रतीक्षित मंजिल शहर चित्रकूट पहुंच ही जायेंगे।कब हमने पूरा महोबा शहर पार किया ,फिर उसके बाद मिली अच्छी सड़क से चलते हुए हम कितने बजे चित्रकूट पहुंचे ये कोई बताने की बात नही थी ।अगर चित्रकूट पहुंच कर एक नई परेशानी से हमारा सामना नहीं होता।

     

     

     

      भूख प्यास ,थकान को भुला कर जब हम।दस बजे के बाद चित्रकूट शहर पहुंचे तो हमारी हैरानी की सीमा ही नही रही।बीस साल पुराना चित्रकूट जिसे हमने पहली बार देखा था ,पूरी तरह बदल चुका था।चौड़ी चौड़ी सड़कों के दोनो ओर छोटे बड़े अनेकों होटल जिनके सामने कारों की लाइनें लगी हुई थी।हम जिस भी होटल में जाते ,कोई कमरा खाली नही का स्वर सुनाई देता। कमाल हो गया ,आज कोई त्योहार भी नही था जिसके कारण इतनी अधिक संख्या में यात्रियों से ये डेट होटल भरे हुए थे।आखिर कार एक होटल के कर्मचारी से जब हमने ये पूछा कि भाई किसी भी होटल में रहने की जगह खाली नही है ,इसका क्या कारण है तो उसका उत्तर सुनकर हम निर्णय नही कर पाए कि हम खुश हों अथवा दुख प्रगट करें ! उसका उत्तर था कि आज शनिवार है और शनिवार ,रविवार को आसपास से लगभग दो सौ किलोमीटर के निवासी यहां अपने अपने व्यक्तिगत वाहनों से आते है। हां ,सोमवार को आपको ये सारे होटल खाली मिल जायेंगे।शायद ये हमारे देश की आर्थिक उन्नति का कारण था परंतु थके मांदे हमारे लिए तो ये किसी वज्रपात की ही तरह था।पूरे चित्रकूट शहर में कोई भी होटल ,धर्मशाला में कोई भी कमरा खाली नही था।अब जाएं तो कहां जाएं ? थकान और भूख से हमारा बुरा हाल था ,तब हमे अपने साढू भाई से हुई बात चीत का स्मरण हुआ कि अगर आप कहें तो वहां के सबसे बड़े आश्रम में हमारी रहने की व्यवस्था कर दें।घड़ी साढ़े दस बजा रही थी जब हमने उन्हें फोन लगाया।शायद हमारी बात सुनकर वे जरूर मुस्कुराएं होंगे।कोई बात नही ,अभी आपका रहने का इंतजाम करते है।कोई दस मिनट बाद उनका फोन आया तो धड़कते दिल से उनकी बात सुनी “” आप शहर में बहने वाली नदी के दूसरी ओर जाएं ,अमुक आश्रम के व्यवस्थापक से बात हो गई है।आपके लिए कमरे की व्यवस्था हो गई है ,साथ ही आश्रम की दिशा निर्देश का भी संदेश आ गया।बहुत ही तसल्ली की सांस लेते हुए जो भी खाने का होटल हमे नजर आया ,बिना खाने की क्वालिटी का ध्यान किए भोजन किया और आश्रम की ओर बढ़ चले !

    साढू भाई की बात सही थी ,इतनी रात को आश्रम के गेट के बाहर ही हमें व्यवस्थापक हमारा इंतजार करते मिले ।नमस्कार का आदान प्रदान करते वे हमें सीधे हमारे कमरे की ओर ले गए।उन्हे धन्यवाद देकर जब हमने कमरे के अंदर प्रवेश किया तो ” ऐसी ” एवम बढ़िया पलंग देख हम दोनो कुछ ही मिनट में थकान में डूबे , कुछ ही मिनटों में निंद्रा देवी की सुखद गोद में समा गए !!

           

     ( शेष क्रमश अगले पोस्ट में )

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    2 Comments

    1. बर्ष 1986-88 के दौरान जब मेरी पोस्टिंग मैहर में थी, तब कई बार चित्रकूट दर्शन का सौभाग्य मिला ‌। परंतु आपके लेख से ऐसा लगता है कि काफी परिवर्तन अब चित्रकूट में हो गया है। बड़ा ही धार्मिक स्थान है। वैसे भी आप बहुत अच्छा लिख रहे हैं इसी तरह लिखते रहें और हम जैसे लोगों की ज्ञान वृद्धि करते रहें।
      धन्यवाद

    2. बहुत सुंदर यात्रा वृत्तांत बहुत रोचक और आनन्द की अनुभूति कराने वाला

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