पिछले पोस्ट से आगे बड़ते हैं। सुबह जब हम उठे तो हमारी थकान एक दम गायब हो चुकी थी।कमरे की खिड़की से बाहर झांका तो हम आश्चर्य चकित रह गए ।सामने मंडाकानी नदी ,नदी के सामने वाले किनारों पर स्नार्थियों की भीड़,सब तरह की चहल पहल ,मंदिरों में पूजा पाठ ,घंटियों के हल्के हल्के स्वर ,हमारे आश्रम से लेकर चारों ओर छाई हरियाली एक अलग ही नजारा प्रस्तुत कर रही थी।हम दोनो कमरे से बाहर खुले मैदान में आए तो आसपास लगे फूल इसे असीम सौंदर्य प्रदान कर रहे थे।आश्रम बहुत ही बड़ा था ,पूरे चार मंजिला...
पिछले पोस्ट से आगे बड़ते हुए, ओरछा से बाहर गुगल बाबा के दिखाए मार्ग पर चित्रकूट जाने हेतु ,लगभग दस किलोमीटर के बाद एक हाइवे दिखाई दिया।सामने लगे बड़े से एक बोर्ड ने गुगल के दिखाए मार्ग की पुष्टि कर दी ,एवम बोर्ड पर लगे निर्देश के अनुसार हम उस हाइवे पर चढ़ गए और चलपड़े सीधे छतरपुर महोबा की ओर।गुगल बाबा के अनुसार हम चित्रकूट के लिए यहां से पहले छतरपुर ,फिर महोबा शहर तब चित्रकूट धाम पहुंचते।शाम के चार बजने जा रहे थे।हमारी अभीष्ट दूरी अभी भी तीन सौ किलोमीटर की थी।हम समझ गए थे कि चित्रकूट...
पिछले पोस्ट से आगे बड़ते है। ओरछा की दूरी जब बारह किलो मीटर ही रह गई तब मुख्य मार्ग से एक अलग मार्ग आ गाया ।सड़क हालांकि छोटी थी परंतु उसके दोनों और थोड़ी थोड़ी दूर पर बड़े ही शानदार होटल बने हुए थे जो ये जताने को काफी थे कि ओरछा एक बड़ा तीर्थ स्थल ही नही अपितु एक मनोरम घूमने के लिए भी यात्रियों का पसंदीदा शहर है।हमने जब गुगल पर सर्च किया तो हमारे ज्ञान में और वृद्धि हो गई कि ओरछा एक तरफ तो धार्मिक,ऐतिहासिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध है तो दूसरी ओर ये...
कोरोना की दूसरी लहर का खात्मा, ,वेक्सिन का कोर्स भी पूरा ,गर्मी का भी खात्मा ,तो .....फिर क्या था ,मन का पंछी बरसात की फुहारों में भीगने को ,उड़ने को व्याकुल हो उठा ,परंतु वही पिंजरे का दरवाजा अभी भी बंद था।कहते हैं ना कि जहां चाह ,वहां राह ! जैसे ही मेरी श्रीमती जी के पास फोन आया कि उनकी माताजी की तबियत नासाज है और वो अपनी बड़ी बेटी को याद कर रही है तो दरवाजा खुलने का भी इंतजाम हो गया।
इधर शताब्दी ट्रेन भोपाल की ओर चली ,उधर मेरा भी प्रोग्राम सीधे भगवान राम के...
पिछले पोस्ट से आगे बढते है, अंदर प्रवेश करते ही लगा ,जैसे हम इस समय हैदराबाद में नही ,बल्कि धुर दक्षिण भारत के किसी आश्रम में खड़े हैं ।सबसे पहले हमारी नजर गई ,,आकाश को चूमती ,विशाल घेरे वाली ,पीले रंग की एक ध्यान मग्न सन्यासी की मूर्ति पर ,जो अपने कंधे पर ध्वज दंड रखे ,दोनो हाथों को जोड़े ,गहरे ध्यान में डूबे हुए थे । हम अभी मंत्रमुग्ध से इस प्रभावशाली ,विशाल आकर की मूर्ति को देख ही रहे थे कि अचानक एक बार फिर से ,दक्षिण भारतीय भजन गूंजने लगे ।
देखा तो सामने एक बहुत ही...